गया – नवंबर 2049 को संविधान सभा में उनके अंतिम भाषण में कुछ अंश इस बात की अनुमति से मेरी चिंता बढ़ गई कि जातियों और पंथ के रूप में मौजूद पुराने दुश्मनों के अलावा हमारे यहां विरोधी विविध राजनीतिक पंथ की बहुत सारी राजनीतिक पार्टियां होगी क्या भारतीय देश को अपने पंथ के ऊपर रखे जाएंगे मगर यह निश्चित है कि अगर पाटिया अपने पंथ को देश से ऊपर के रख पाएँगे हमारी स्वतंत्रता जोखिम में पड़ जाएगीऔर संभवत हमेशा के लिए खो जाएगी इस संभावना को रोकने के लिए हम सबको कृत संकल्प होना होगा हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने खून के अंतिम बूंद तक कृत संकल्प होना होगा 25 जनवरी 1950 से भारत इस अर्थ में एक लोकतांत्रिक देश होगा की उस दिन से भारत में जनता का जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन होगा फिर यही विचार मेरे दिमाग में आता है कि उनकी लोकतांत्रिक संविधान का क्या होगा वह क्या इसे बकरार रख सकेगी या इसे खो देगी यह दूसरा विचार है और जो मेरे दिमाग में आता है यह मुझसे उतना ही चिंतित करता है जितना कि पहले वाला विचार लोकतंत्र की जगह तानाशाही हो जाने का खतरा है इस नवजात लोकतंत्र के लिए बिल्कुल संभव है कि वह अपना रूप बकरा रखते हुए वस्तुतः तानाशाही को जगह दे दे अगर जीत भारी बहुमत शिव होगी तो दूसरी संभावना तानाशाही को वास्तविकता बन जाने का ज्यादा खतरा है यहां उन्होंने आयरलैंड के एक देशभक्त डेनियल कर्नल को उद्धृत किया है अपने सम्मान की कीमत पर कोई व्यक्ति किसी का कुछ नहीं हो सकता अपने अस्तित्व की कीमत पर कोई महिला कृतिक नहीं हो सकती और अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर कोई राष्ट्र किसी का नहीं हो सकता यह चेतावनी किसी अन्य देश की तुलना में भारत के लिए ज्यादा जरूरी है क्योंकि रास्ता हो सकता है मगर राजनीतिक में भक्ति या नायक पूजा पतन का रास्ता होता है और अंततः तानाशाही स्थापित करने का रास्ता है हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को एक सामाजिक लोकतंत्र की बनाना होगा राजनीतिक लोकतंत्र यदि सामाजिक लोकतंत्र पर आधारित ना हो तो यह टिक नहीं सकता सामाजिक लोकतंत्र का क्या मतलब है।सामाजिक लोकतंत्र का मतलब होता है जीवन जीने का ढंग एक और तरीका जो स्वतंत्रता बराबरी और भाईचारा को जीवन के उसूल के बतौर पर ममता देता है स्वतंत्रता बराबरी और भाईचारा के इन उसूलों को जो नेतृत्व है उसे अलग-अलग आइटम के रूप में नहीं लेना होगा वह इस अर्थ में एकता का निर्माण करते हैं कि इनमें से किसी एक का दूसरे से अलग करना लोकतंत्र में असली उद्देश्य को ही व्यर्थ कर देना है स्वतंत्रता को बराबरी से अलग नहीं किया जा सकता उसी तरह बराबरी को सत्ता से अलग नहीं किया जा सकता है और ना ही स्वतंत्रता और बराबरी को भाईचारे से अलग किया जा सकता है बराबरी के बिना स्वतंत्रता बहुत ऊपर थोड़े लोगों का वर्चस्व देगी स्वतंत्रता के बिना बराबरी व्यक्तित्व को खत्म कर देगी भाईचारे के बिना स्वतंत्रता एवं बराबरी एक स्वाभाविक गति का चीज नहीं हो सकती उन्हें कृति के देने के लिए कांस्टेबल की जरूरत होगी भारतीय समाज में दो चीजें एकदम गायब है एक है बराबरी भारत में श्रेणी व गैर बराबरी के सिद्धांत पर आधारित समाज है यह कैसा समाज जहां कुछ के पास अकूत संपदा है वहीं दूसरी तरफ और गरीबी है 26 जनवरी 1950 को अंत विरोधी के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं जहां राजनीतिक के बराबरी होगी। रिपोर्ट – राजेश कुमार मिश्रा, updated by gaurav gupta

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