देह व्यापार हमारे समाज में कोढ़ में खाज की तरह है | यह सहन भी नहीं होती और इससे हम छुटकारा भी नहीं पा सकते , पीड़ा और गहरी पीड़ा में बदल जाती है | आज हम यहाँ अपने पाठको को भारत में पनप रही वैश्यावृत्ति पर विस्तार से चर्चा करेंगे | हम आपको बता रहे है  के मुंबई कमाठीपूरा की एक घिनौनी सच , हम आपको बताएंगे कोलकाता के सोनागाछी की कहानी और बिहार की चतुर्भुज हो या फिर हैदराबाद की नगलीपूणा | बहरहाल हम आप को बता दे की देश की राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं है कमोबेश हर जगह एक ही कहानी देखने को मिलती है | दिल्ली की

मशहूर जी बी रोड एक समय से इसका एक पर्याय: बना हुआ है | विस्तार से खबर पर चर्चा करने से पहले हम इसके इतिहास को समझते है | वैश्या प्राचीन काल से ही हमारी जरुरत रही है तब इन्हे रक्काशा कहते थे | समाज का मनोरंजन करना जहां इसका काम था वही कामपिपासु देह लोभी की लिप्सा से पीड़ित लोगो की जरूरते पूर्ति करती रही है | तब की रक्काशा अब तक की वैश्या में परिणत है | भले ही हमारे समाज की ये कोढ़ हो लेकिन हकीकत इसके विपरीत है | हमारे समाज में वैश्या की महत्वपूर्ण भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है | अगर ये न हो तो पता नहीं किस शहर किस चौक चौराहे पर कौन कहां हवस की शिकार हो जाये | कामातुर इंसान की हवस को पूरी करती है ये वेश्या | इनकी दयनीय स्थिति पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता | लेकिन कुछ लोग इनकी पीड़ा समझ कर इनके जीवन में महिती योगदान दे रहे है, जिनमे एक नाम मशहूर फिल्म अभिनेत्री सुष्मिता सेन है जो इससे जुड कर सुधार के लिए प्रयासरत है | यह जरुरी नहीं की जिसकी माँ वैश्या है उसकी बेटी भी वैश्या बने |

इसके लिए उनके जीवन को सुधारने एवं उनके बच्चों की शिक्षा हेतु कई संस्था काम कर रही है | कमाठीपूरा मुंबई की रेशमा अपना दुःख कुछ इस तरह बयां करती है “साहब क्या बताऊँ गरीबी से तंग आकर कोकराझार असम से मुंबई पैसा कमाने आई थी, जिसके सहारे आई थी उसी ने मेरा देह शोषण किया और फिर दोस्तों और ग्राहकों के आगे परोस दिया | सच तो यही है की पैसो की खनक में मै सही और गलत की फर्क को भूल गई थी | पैसा और पैसा की चाहत में इस दलदल में धंसती चली गई | अब तो लगता है जिंदगी का अंत इसी में हो जायेगा | मुजरे के लिए प्रसिद्ध कोलकाता के सोना गाछी की सुनीता की कहानी कुछ अलग नहीं है | प्रेम में छली गई वो कहती है ,…………प्रेमी अशोक के कहने पर नेपाल से बंगाल आकर बिक गई ! छलिया मुझे बेच कर         पतिता उद्धार हेतु कार्यरत सुष्मिता सेन                                                                                चला गया और ताउम्र का दर्द भी दे गया |नसीब की फ़क़ीर बनकर इस नाटकीय जीवन ,जीने को मजबूर हूँ | कला ही नहीं तन भी  बेचती हूँ ! कमोवेश मुजफ्फरपुर की चतुर्भुज की और दिल्ली की जी बी रोड की कहानी भी यही है | दिल्ली के जी बी रोड के एक कोठा पर काम करने वाली रेहाना की कहानी कुछ इस तरह की है | बिहार के एक गांव से काम की तलाश में वह आई थी दिल्ली | अलबत्ता काम तो मिला नहीं तन के बाजार में सामान बनकर बैठ गई | मुंआ चंद रुपयों में मुझे बेचकर चला गया | अब सिसकती जिंदगी जीने को मजबूर हूँ बड़े ही दार्शनिकता अंदाज़ भरे शब्दो में कहती है “जख्म अगर लग जाये तो इलाज संभव है , पर मन पे लगे जख़्म को किस मलहम से मिटाऊँ” इस दर्द भरी जिंदगी को जीने के लिए मजबूर है ये वैश्याएँ | हैदराबाद की कामिनी का हाल भी बिलकुल हूबहू है उसकी बातो से दर्द कुछ इस तरह छलका इस ” जिंदगी से ऊब चुकी हूँ मैं | मैंने कई बार अपनी जीवन को खत्म करने की ठान ली थी” आगे वह कहती है इस जिंदगी का जिम्मेवार शख्स मेरा खुद का चचेरा देवर था | उन्होंने बताया की उनके पति के देहांत के बाद वो अकेले रहने लगी थी, पर इस यौवन के देहलीज़ पर भला निर्दयी समाज मुझे नज़रअंदाज़ कैसे करता | इस दौरान मेरा देवर एक दिन अकेला पाकर मुझे दागदार कर दिया ,और फिर शादी का झांसा देकर हैदराबाद ले आया यंहा लाकर कई दिनों तक जिस्मो से खेलता रहा और जब मन भर गया तो मुझे बेच गया | तब से अब तक इसी को अपना नसीब मानकर इस नर्क में जी रही हूँ | अपने बच्चे को बाप का नाम तो नहीं दे सकी पर जो जिंदगी मैं झेल रही हूँ बस वह मेरे बच्चे को नसीब न हो यही मेरी कामना है | ऐसी आपबीती को सुनकर हमारी आत्मा झकझोर उठती है | कैसे कोई इंसान अपने मतलब के लिए किसी महिला को सामान समझ कर उसके जिस्म को बाजार में बेच देता है | जंहा उनकी इज़्ज़त उनकी मान मर्यादा उनकी लज्जा की बोलिया लगाई जाती है ,और फिर बंद अँधेरे कमरे में उनकी इज़्ज़त तार – तार की जाती है | यह सारी बाते सौ टका सच है | ये कहानी सिर्फ रेशमा ,सुनीता की नहीं बल्कि उन हज़ारो लड़कियों की है जिन्हे कोई शख्स धोखा देकर इस नर्क में धकेलता है और कुछ अपनी जिंदगी की आर्थिक स्थिति के कारण | ये सारी बात हमारे समाज की दुर्दशा को दर्शाता है और हमें शर्मिंदा होने पर मज़बूर करता है | पर इन सब से किसी को फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि सभी अपनी जिंदगी में जीने व्यस्त है , फिर कोई क्यों भला इन वैश्याओ के बारे में सोचे,पर यह भी हमारे समाज का हिस्सा है इनके जीवन को सुधारना अत्यंत आवश्यक है | : अनुभवी ऑंखें फीचर डेस्क :

loading...