छातापुर(सुपौल) – जीवित पुत्र की लंबी आयु तथा सुख समृद्धि के लिए महिलाओं और आस्थावान पुरुषों द्वारा किये जाने वाली प्रसिद्ध तीन दिनों तक चलने वाला निर्जला ब्रत जिउतिया सोमवार को नहाय खाय से शुरू हो गया।
इस पर्व पर सबसे पहले महिलाएं नदी या तालाब में स्नान कर नेम निष्ठा के साथ भोजन पकाती है तथा फिर स्नान कर जीवित पुत्र तथा मृत पूर्वजो के लिए पूजन करने के बाद भोजन ग्रहण करती है। इस पर्व को जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) के रूप में जाना जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाए जाने वाले पर्वों में से एक है। यह व्रत का खास महत्व होता है जिसे अपनी संतान की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए रखा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार जिउतिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इस बार यह 2 अक्तूबर को मनाया जा रहा है। स्वच्छता और नियम निष्ठां के महापर्व छठ की तरह ही यह व्रत भी तीन दिनों तक चलता है जिसमे पहले दिन नहाय खाय, दुसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है।

पण्डित आचार्य धर्मेन्द्र नाथ मिश्र बताते है कि आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। माना जाता है जो महिलाएं जीमूतवाहन की पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करती हैं उनके पुत्र को लंबी आयु व सभी सुखों की प्राप्ति होती है। पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा करती हैं। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है। जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती हैं। कहते हैं जो महिलाएं पूरे विधि-विधान से निष्ठापूर्वक कथा सुनकर ब्राह्माण को दान-दक्षिणा देती हैं, उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है और सुख–समृद्धि प्राप्त होती है। पर्व छातापुर समेत, चुन्नी, सोह्टा, डहरिया आदि पंचायतों में मनाया जा रहा है |रिपोर्ट – संजय कुमार भगत, updated by gaurav

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