भक्त की आस्था और विश्वास की जीत का प्रतीक है ‘नरसिंह चतुर्दशी

—भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने नृसिंह रूप धारण किया

जीवन में जब भी हम कोई काम पूर्ण श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के साथ करते हैं तो सभी रास्ते सुगम हो जाते हैं। भक्त प्रह्लाद के माध्यम से हम इसे और भी आसानी से समझ सकते हैं। असुर कुल में जन्म लेने के बावजूद भी उनकी भगवान कृष्ण में अटूट श्रद्धा थी और इसी वजह से बचपन से ही उन्हें अपने पिता हिरण्यकशिपु की अनेक यातनाएँ सहनी पड़ीं लेकिन अंत में भक्त की आस्था और विश्वास की जीत हुई और भगवान कृष्ण ने स्वयं उनकी रक्षा की। इसी उपलक्ष्य में वैसाख मास की चतुर्दशी को ‘नृसिंह चतुर्दशी’ मनाई जाती है।

वंदना गुप्ता ने बताया इस्कॉन द्वारका श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर में 4 मई बृहस्पतिवार को नरसिंह चतुर्दशी उत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर प्रातः 8 बजे से 9 बजे तक भक्त मित्र प्रभु द्वारा नृसिंह देव भगवान की कथा होगी, जिसमें भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशिपु द्वारा दिए कष्टों और एक भक्त के रूप में प्रह्लाद की भगवान कृष्ण के प्रति अगाध आस्था और विश्वास का वर्णन किया जाएगा। इसी दिन भगवान कृष्ण ने भक्त प्रह्रलाद की रक्षा हेतु कैसे हिरण्यकशिपु के संहार के लिए नृसिंह रूप धारण किया था! नृसिंह चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण राजमहल के खंभे से एक अद्भुत रूप, आधे मनुष्य तथा आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे। हिरण्यकशिपु ने हज़ारों साल तपस्या कर ब्रह्मा से अमरता का वरदान माँगा कि न मैं सुबह मरूँ न शाम को, न अंदर मरूँ न बाहर, न ऊपर मरूँ न नीचे, न दिन में मरूँ न रात में, न अस्त्र से मरूँ न शस्त्र से, न पशु से मरूँ न मनुष्य से, न भूमि में मरूँ न आकाश में और बारह महीने में भी कभी न मरूँ। इस तरह वह अमर होना चाहता था लेकिन भगवान कृष्ण ने ब्रह्मा के वरदान को भी अक्षुण्ण रखा और अपने भक्त की आस्था और विश्वास को भी बरकरार रखा। उन्होंने संध्या के समय का चयन कर हिरण्यकशिपु के महल की दहलीज़ पर उसे अपनी गोद में रखकर अपने नाखूनों से उसे चीर डाला। अतः भगवान अपने भक्त का कष्ट कभी नहीं देख सकते और उनकी रक्षा के लिए हर पल तैयार रहते हैं। हमें भी भक्ति भाव से ऐसे ही भगवान की स्तुति करनी चाहिए ताकि हम भी अपने जीवन के विविध कष्टों से मुक्त हो सकें और काम, क्रोध, लोभ जैसे शत्रुओं से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

उत्सव के अनेक कार्यक्रमों में शाम 4 बजे कीर्तन आरंभ होगा। बच्चों के लिए मुखौटा कार्यशाला आयोजित की जाएगी। शाम 6 बजे महा-अभिषेक किया जाएगा और शाम 7 बजे भोग अर्पण के बाद महाआरती व उसके बाद प्रसादम वितरण का कार्यक्रम रहेगा।

 

updated by gaurav gupta 

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