वेदों, पुराणों एवम शास्त्रों के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज मनाया जायेगा। जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस पर्व का अति विशेष महत्व है। यह पर्व भाई-बहन के रिश्तों का प्रतीक है। जिसे सभी लोग बड़े ही श्रद्धा के साथ मनाते है। हिन्दू धर्म में अनेक पर्व मनाया जाता है। जिसमें भैया दूज भाई-बहन के आत्मीय रिश्ते को दर्शाने वाला पर्व है। इस वर्ष शनिवार 21 अक्टूबर यानी कल भैया दूज का पर्व मनाया जाएगा।
भैया दूज की कथा
पौराणिक कथा अनुसार भगवान सूर्य देव की पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को कई बार भोजन के लिए आमंत्रित किया। किन्तु यमराज व्यस्तता के कारण उनका आग्रह टाल जाते थे। कहा जाता है एक बार यमराज ने कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमुना का आमंत्रण स्वीकार कर उनके घर पर भोजन ग्रहण करने के लिए पधारें। यमुना ने श्रद्धा-भाव से अपने भाई यमराज का सत्कार कर भोजन कराया।
भोजन ग्रहण करने के पश्चात यमराज ने बहन यमुना को वर दिया कि जो मनुष्य इस दिन यमुना नदी में स्नान कर अपने बहन के घर जाकर श्रद्धापूर्वक भोजन ग्रहण करेगा। उसे एवम उसकी बहन को यम का भय नही होगा। तब से लोक में यह यम द्वितीया पर्व के नाम से प्रसिद्ध हो गया। भाई-बहन का पर्व होने के कारण इसे भैया दूज भी कहा जाता हैं।
क्या है महत्व
हिन्दू समाज में भैया दूज पर्व का अति विशेष महत्व है। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक है। हिन्दू समुदाय में सभी वर्ग के लोग इस पर्व को हर्षोउल्लास के साथ मनाते है। इस पर्व के पावन अवसर पर बहनें अपने भाई की दीर्घायु व् सुख समृद्धि की कामना करती है तो भाई भी अपने बहन के सुख-दुःख में साथ देने एवम बहन की रक्षा का वचन देता है। आधुनिक समय में भैया दूज के पावन अवसर पर भाई अपने बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट प्रदान करते है।
पर्व मनाने की विधि
इस दिन घर के सभी सदस्य प्रात काल उठते है। स्नान-ध्यान से निवृत होकर भैया दूज पर्व मनाने के लिए एकत्र होते है। इस पूजा के अवसर पर बहने अपने भाई की हथेली पर चावल का घोल लगाती है। माथे पर चन्दन का टिका लगाकर मन्त्र उच्चारण करती है जैसे यमुना पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्णा को, उसी प्रकार मैं पुजू अपने भाई को, गंगा, यमुना की नीर बहे मेरे भाई की आयु बढे कहकर भाई की हथेली की पूजा करती है। बहनें लोक गीत भी गुनगुनाती हैं।
पूजा की कथा एवं इतिहास
सांप काटें, बिच्छू कांटें, जो भी काटें वो आज काटें इस गीत को इसलिए गुनगुनाती है। क्योंकि धर्मिक मान्यता के अनुसार यमराज ने यमुना जी को वर दिया था कि जो कोई यमुना स्नान कर बहन के घर पर भोजन ग्रहण करेगा। उसे एवम उसकी बहन को यम से भय नही होगा। इसलिए यदि आज के दिन भयंकर जीव-जंतु भी कांट ले तो यमराज उसके भाई के प्राण नहीं हरेंगें। तत्पश्चात बहनें अपने भाई की आरती उतारती है व् कलावा बांधती है।
आरती उतारने के पश्चात बहनें अपने भाई को माखन, मिश्री, मिठाई आदि खिलाती है। भैया दूज की संध्या को बहनें यमराज के नाम से चौमुख दिया जलाकर घर के बाहर रखती है। दीप जलने के वक्त यदि आसमान में चिल उड़ता हुआ दिखाई दे तो यह अति शुभ माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस वक्त बहनें जो कोई दुआ करती है, उसे यमराज कबूल करते है। इस प्रकार भैया दूज की कथा सम्पन्न हुई।ःअनुभवी आंखें न्यूज के लिए एस एस वीर्दी (पूर्व प्राचार्य जीआरडी वर्ल्ड स्कूल देहरादून) की रपट।
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