हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है. इस मौके पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, तिलक लगाती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं. इस दिन रूठी बहन और भाई को मनाने के लिए आपको कुछ करने की जरूरत ही नहीं होती, द‍रअसल ये दिन होता ही कुछ ऐसा है, जहां सब अपने गिले-शिकवे भुला देते हैं. इस त्‍योहार को पूरे भारतवर्ष में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है.

रक्षाबन्धन के त्योहार में रक्षासूत्र यानी राखी कच्चे सूत से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे और सोने या चांदी जैसी महंगी वस्तु तक की हो सकती है. लेकिन इस पावन त्योहार में रक्षासूत्र या राखी से अधिक महत्व उस भावना का है, जिस पवित्र भावना के तहत बहनें भाईयों को राखी बांधती हैं.

ऐसा कहा जाता है कि रक्षाबन्धन के मौके पर पुरोहित यजमानों के घर जाते हैं और उन्‍हें राखी बांधते हैं, जिसके बदले में यजमान पुरोहितों को दक्षिणा देते हैं और भोजन कराते हैं. रक्षासूत्र बांधते समय पुरोहित एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, कहा जाता है कि इस श्‍लोक का संबंध राजा बलि की वचनबद्धता से जुड़ा है.

‘येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:. तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल’ रक्षाबंधन का मंत्र है. जिसका अर्थ है जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा.

रक्षाबन्धन भाई और बहन की आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती देने वाला त्‍योहार है. शायद यही कारण है कि इस त्‍योहार पर न केवल बहन भाई को ही बल्कि अन्य सम्बन्धों में भी राखी बांधने का चलन है.

रक्षाबन्धन के मौके पर स्‍पेशल डिशेज भी बनाई जाती हैं जैसे घेवर, शकरपारे, नमकपारे. घेवर सावन की स्‍पेशल मिठाई है यह केवल हलवाईयों द्वारा ही बनाया जाता  है. कुछ लोग इस त्‍योहार के मौके पर शकरपारे और नमकपारे अपने घर पर भी बनाते हैं.

रक्षाबन्धन को श्रावण महीने में मनाया जाता है. इस कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहा जाता है.

इस बार रक्षाबन्धन के दिन चंद्रग्रहण भी पड़ रहा है ऐसे में समय से अपने भाई को राखी बांधना न भूलें. सुबह 11.07 बजे से दोपहर 1.50 बजे तक रक्षा बंधन के लिए शुभ समय है.

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