*(रामखिलाड़ी शर्मा जर्नलिस्ट*) ✍✍✍✍✍✍
आइये राम लखन भरत भाईयों का बचपन का एक प्रसंग है सुनते हैं और एक सीख भी लेते हैं…..
जब ये लोग गेंद खेलते थे। तो लक्ष्मण राम की साइड उनके पीछे होता था, और सामने वाले पाले में भरत शत्रुघ्न होते थे। तब लक्ष्मण हमेशा भरत को बोलते राम भैया सबसे ज्यादा मुझे प्यार करते है, तभी वो हर बार अपने पाले में अपने साथ मुझे रखते हैं……
लेकिन भरत कहते नहीं राम भैया सबसे ज्यादा मुझे प्यार करते हैं, तभी वो मुझे सामने वाले पाले में रखते हैं। ताकि हर पल उनकी नजरें मेरे ऊपर रहे, वो मुझे हर पल देख पाए, क्योंकि साथ वाले को देखने के लिए तो उनको मुड़ना पड़ेगा।
फिर जब भरत गेंद को राम की तरफ उछालते तो राम जानबूझ कर गेंद को छोड़ देते और हार जाते, फिर पूरे नगर में उपहार और मिठाईयां बांटते खुशी मनाते।
सब पूछते राम जी आप तो हार गए फिर आप इतने खुश क्यों है, राम बोलते मेरा भरत जीत गया। फिर लोग सोचते जब हारने वाला इतना कुछ बांट रहा है तो जीतने वाला भाई तो पता नहीं क्या -क्या देगा…..
लोग भरत जी के पास जाते हैं। लेकिन ये क्या भरत तो लंबे लंबे आंसू बहाते हुए रो रहे हैं।
लोगो ने पूछा- भरत जी आप तो जीत गए है, फिर आप क्यों रो रहे है ? भरत बोले- देखिये मेरी कैसी विडंबना है, मैं जब भी अपने प्रभु के सामने होता हूँ तभी जीत जाता हूँ।
मैं उनसे जीतना नहीं मैं उनको अपना सब हारना चाहता हूं। मैं खुद को हार कर उनको जीतना चाहता हूं….
इसलिए कहते हैं, भक्त का कल्याण भगवान को अपना सब कुछ हारने में है, सब कुछ समर्पण करके ही हम भगवान को पा सकते है… एक भाई दूसरे भाई को जीताकर खुश हैं।
दूसरा भाई अपने भाई से जीतकर दुखी है। इसलिए कहते है खुशी लेने में नही देने में है…..
जिस घर मे भाई -भाई मिल कर रहते है। भाई -भाई एक दूसरे का हक नहीं छीनते उसी घर मे राम का वास है….
जहां बड़ो की इज्जत है। बड़ो की आज्ञा का पालन होता है, वहीं राम है।
जब एक भाई ने दूसरे भाई के लिए हक छोड़ा तो रामायण लिखी गयी, और जब एक भाई ने दूसरे भाई का हक मारा तो महाभारत हुई….
इसलिए असली खुशी देने में है छीनने में नहीं। हमें कभी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए, न ही झूठ व बेईमानी का सहारा लेना चाहिए।
जो भी काम करें उसमें सत्य निष्ठा हो… यही सच्चा जीवन है। यही राम कथा का सार है। updupdated by gaurav gupta