–ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का प्राकट्य दिवस
–पुरी के दिव्य जल से होगा भगवान का अभिषेक
–पुरी मंदिर की तर्ज पर उड़िया व्यंजनों से सजेगा ‘आनंद बाजार’
द्वारका /दिल्ली – अपने जीवन में हम हर वह कार्य करते हैं जो हमें खुशी प्रदान करता है। चाहे अपने लिए हो, घर-परिवार, समाज व देश के लिए। इसके पीछे रिश्ते-नातों के प्रति आस्था, प्रेम, कर्तव्य, श्रद्धा व सेवा भाव होता है। यानी हर काम के पीछे भाव छिपा है और भावों की बड़ी महिमा होती है। भगवान भी भक्तों में भाव देखते हैं। उनके भक्त जब पूर्ण सेवा भाव से भजन, कीर्तन और उनकी लीलाओं के उत्सव में तत्पर रहते हैं, तो भगवान भी प्रसन्न होते हैं। भगवान को प्रसन्न करने का एक ऐसा ही अवसर हमें ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन प्राप्त हो रहा है, जिस दिन भगवान जगन्नाथ, बलदेव, सुभद्रा, सुदर्शन का स्नान किया जाता है। इस पवित्र दिन को भगवान जगन्नाथ के प्राकट्य अथवा जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं। मंगलवार को इस्कॉन द्वारका के श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर में स्नान यात्रा उत्सव का आयोजन किया जा रहा है।अनेक भक्त भारी संख्या में इसमें भाग लेंगे।
उत्सव का प्रारंभ शाम साढ़े 5 बजे से होगा। मंदिर के चारों ओर भगवान की परिक्रमा यात्रा निकाली जाएगी। जगन्नाथ पुरी धाम की तर्ज पर भगवान को अर्पित करने के लिए अनेक तरह के उड़िया व्यंजनों से ‘आनंद बाजार’ सजाया जाएगा। इसके बाद शाम 6 बजे भगवान जगन्नाथ का 108 दिव्य कलश जल से स्नान किया जाएगा। यह कोई सामान्य जल नहीं अपितु जगन्नाथ पुरी धाम के दिव्य कूप का विशेष जल (गंगा, यमुना, सरस्वती का सम्मिश्रण) होगा। स्नान के पश्चात उनका सुगंधित फूलों से अभिषेक किया जाता है। तत्पश्चात भोग अर्पण किया जाएगा। शाम साढ़े 7 बजे भगवान गजवेश यानी गणेश रूप में दर्शन देंगे।
कहते हैं भगवान जगन्नाथ जी को स्नान के बाद ठंड लग जाती है और उन्हें तेज़ बुखार आ जाता है। इस कारण वे विश्राम के लिए चले जाते हैं और उनका दर्शन बंद कर दिया जाता है। फिर 15 दिन बाद रथ-यात्रा के समय वे अपने भक्तों को प्रसन्नतापूर्वक दर्शन देते हैं।
आखिर गजवेश में क्यों आए भगवान!
जब आस्था और श्रद्धा की बात आती है तो भगवान अपने भक्त के सामने झुकने से भी पीछे नहीं रहते। ऐसा ही एक भक्त गणपति भट्ट परम बह्म का उपासक था, जो भगवान के दर्शन करने जगन्नाथ पुरी पहुँचा। अत्यधिक शास्त्रों को पढ़ने के बाद उसके मन में धारणा बैठ गई थी कि परम बह्म की सूँड़ होती है लेकिन जब ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वह पुरी में आया और देखा कि अरे, इनकी तो सूँड़ ही नहीं है, अतः यह परम ब्रह्म नहीं हो सकते। यह सोच कर वह वहाँ से वापस जाने लगा, परंतु भगवान को यह देखकर दुख हुआ और उसे एक ब्राह्मण के वेश में आकर कहा कि आप दोबारा भगवान के दर्शन के लिए जाओ और यही परम बह्म हैं। अतः अपने परम भक्त के लिए भगवान ने गज रूप धारण किया। तब से हर स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ और बलदेव का गज रूप प्रदर्शित होता है और सुभद्रा महारानी का कमल का श्रृंगार होता है। वंदना गुप्ता
updated by gaurav gupta