––जीवन में मधुरता लाएँ, आनंद को बढ़ाएँ
—अपने प्रेममयी भावों को पहले कृष्ण के श्रीचरणों में अर्पित करें
—-प्रेम पर्व पर कृष्ण द्वारा बताए गए भगवत प्रेम मार्ग पर चलें
—नीले और पीले रंगों के परिधानों से करें अपने कृष्ण प्रेम को व्यक्त
दिल्ली – किसी अपने के बारे में सोचना, बात करना, मिलना, देखना-सुनना व उसके लिए भेंट देना व लेना एक सुखद अनुभूति व खुशी प्रदान करता है। यूं तो ऐसा अनुभव हर पल, हर दिन किया जा सकता है, मगर आधुनिक युवा पीढ़ी 14 फरवरी के दिन खासतौर से प्रेम का आदान-प्रदान करके इसे उत्सव के रूप में मनाती है। कई लोग अपने इस दिन को भगवान कृष्ण और श्रीमती राधारानी के दिव्य प्रेम से भी जोड़कर देखते हैं तो इसलिए हमें कृष्ण के अथाह प्रेम को समझना होगा। शास्त्रों में कहा गया है कि कृष्ण का प्रेम अपनी अंतरंगा शक्ति राधारानी के लिए तो था ही, बल्कि हर उस भक्त के प्रति भी था, जो उन्हें प्रेम करते थे। फिर चाहे वह उनका भक्त अर्जुन हो, बड़ा भाई बलराम हो या मित्र सुदामा। आप भी अपने जीवन में प्रेम और मधुरता लाना चाहते हैं तो भगवान कृष्ण के साथ प्रेम का आदान-प्रदान कर इस सुखद अनुभूति को प्राप्त कर सकते हैं। इसे आप शब्दों के रूप में भी व्यक्त कर सकते हैं। श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर में इस प्रेम पर्व के दिन आप भगवान के चरणों में श्रद्धा, विश्वास और प्रेमपूर्वक स्वरचित कविता अर्पण कर इस अवसर का लाभ ले सकते हैं। इस्कॉन द्वारका के फेसबुक व इंस्टाग्राम पेज पर टैग की गई इन कविताओं में से प्रथम, द्वितीय व तृतीय तीन विजेताओं को पुरस्कृत किया जाएगा। सही मायनों में यह पुरस्कार भगवान का प्रेमरूपी आशीर्वाद प्राप्त होगा, जो आप तक अपनी कृपा बरसाते हुए पहुँचेगा।
यह भी माना जाता है कि भक्ति भी प्रेम का एक रूप है। अगर आप भगवान से थोड़ा भी प्रेम करते हैं तो वह आपकी रक्षा करते हैं और अनंत प्रेम की वृष्टि करते हैं। जैसा कि भगवद्गीता के अध्याय 9 के श्लोक 26 में कहा गया किः
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपह्रतमश्रनामि प्रयत्यामनः।।
यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल अर्पित करता है, तो मैं उसकी भेंट स्वीकार करता हूँ। ऐसे ही भगवान आपके भक्ति प्रेम को भी स्वीकार करेंगे। यदि आप अपने जीवन में मधुरता लाना चाहते हैं और आनंद को बढ़ाना चाहते हैं तो भगवान के प्रति प्रेम में सेवा भाव लाना सीखें और सेवा ही समर्पण है। जब आपके अंदर यह गुण आत्मसात हो जाएँगे, तो आप स्वयं ही कृष्ण द्वारा बताए मार्ग पर चलने लगेंगे और सब कुछ प्रेममय और मंगलकारी लगने लगेगा।
कलियुग में धरती पर मंगल करने का काम अपने प्रथम विस्तार कृष्ण ने बलराम यानी नित्यानंद प्रभु को दिया। वे स्वयं उनके साथ चैतन्य महाप्रभु (कृष्ण अवतार) के रूप अवतरित हुए। इस वर्ष 14 फरवरी के दिन ही नित्यानंद प्रभु का आविर्भाव दिवस भी है, जिसे वैष्णव धूमधाम से मनाते हैं। उनके पसंदीदा व्यंजनों का भोग लगाते हैं। उन्हें हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अचार, चटनी और मिठाइयाँ बहुत पसंद हैं। उनकी अन्य पसंद की बात करें तो चैतन्य महाप्रभु को पीला रंग और नित्यानंद प्रभु को नीला रंग बहुत पसंद है। इस दिन मंदिर की साज-सज्जा भी नीले और पीले रंग से की जाएगी। भक्तगण चाहें तो इस दिन इन दोनों रंगों के परिधान पहनकर भगवान के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित कर सकते हैं। इस अवसर पर कृष्ण बलराम जो गौर निताई के रूप में अवतरित हुए, आप सब पर अपनी कृपा बरसाते रहें।
updated by gaurav gupta