—इस्कॉन द्वारका का सराहनीय प्रयास
—हरि नाम के जरिए कष्टों से राहत देने की मुहिम
—जन-कल्याण के उद्देश्य से नगर संकीर्तन यात्रा
प्राकृतिक संसाधनों का जब हम आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपभोग करते हैं तो प्रकृति रुष्ट होकर कहर बरसाती है। कभी भूकंप के रूप में तो कभी बाढ़ के रूप में। राजधानी दिल्ली में इन दिनों वर्षा की अतिवृष्टि के कारण लोगों को बाढ़ के संकट का सामना करना पड़ रहा है। अधिकांश पीड़ित अपने घर से बेघर हुए हैं तो कहीं व्यावसायिक व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। ऐसे में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के उद्देश्य से श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश इस्कॉन द्वारका मंदिर द्वारा 16 जुलाई रविवार को हरि नाम संकीर्तन यात्रा निकाली गई। महावीर एंक्लेव स्थित पशु चिकित्सालय (वेटरिनरी हॉस्पिटल) से शुरू होकर यह यात्रा शहर के कोने-कोने से होते हुए दादा देव हॉस्पिटल, डाबरी के सामने सामुदायिक भवन पर समाप्त हुई।
इस्कॉन द्वारका के कई वरिष्ठ भक्त जैसे जाने-माने प्रचारक प्रशांत मुकुंद दास, अमल कृष्ण दास आदि ने एकसाथ यात्रा में सम्मिलित होकर भगवान श्रीकृष्ण से पीड़ितों का दुख दूर करने के लिए प्रार्थना की और यह संदेश दिया कि ऐसे समय में हमें घबराना नहीं चाहिए बल्कि हरि नाम के माध्यम से इस कष्ट से बाहर निकलने का प्रयास करना चाहिए।
शास्त्रों में भी हरि नाम संकीर्तन की महिमा कुछ इस प्रकार बताई गई है। श्रीमद्भागवत महापुराण के द्वादश स्कंध के 13वें अध्याय के 23वें श्लोक में कहा गया है किः
नाम संकीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम्,
प्रणामो दु:खशमनस्तं नमामि हरिं परम्।
अर्थात मैं उन भगवान् श्रीहरि को सादर नमस्कार करता हूँ, जिनके पवित्र नामों का सामूहिक कीर्तन सारे पापों को नष्ट करता है और जिनको नमस्कार करने से सारे भौतिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।
कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा। तो कलियुग में केवल नाम का आधार ही है जिसके द्वारा व्यक्ति अपना उद्धार कर सकता है अर्थात मुक्ति प्राप्त कर सकता है। और जो भी इसको सुनता है, चाहे वह पेड़-पौधे एवं विशाल वृक्ष हों या सड़क पर चलने पर आमजन, सभी का भला करता है। केवल श्रवण करने मात्र से इनको इसका लाभ मिलता है। अतः जन-कल्याण के उद्देश्य से यह हरिनाम संकीर्तन किया गया।
संकीर्तन शब्द का अर्थ है कि संग में आकर कीर्तन करना। तो ज्यादा से ज्यादा लोग संग में एकत्रित हुए। यूँ भी कहा गया है कि– कलो संग शक्ति– अर्थात कलियुग में संग की शक्ति का बहुत महत्व है और इसी संकीर्तन से हमारे सभी अनर्थों एवं कष्टों का नाश होता है और सभी पाप विनष्ट हो जाते हैं।
अतः इसकी इतनी महिमा को देखते हुए सभी ने हरिनाम संकीर्तन में भाग लिया। इस संकीर्तन यात्रा के माध्यम से श्रीकृष्ण के अवतार चैतन्य महाप्रभु के संदेश भी लोगों तक पहुँचाया गया कि आप हरे कृष्ण महामंत्र को स्वीकार करो और नाम जप में रुचि विकसित करो। फिर हरि नाम संकीर्तन के माध्यम से लोगों में इसका प्रचार करो। संकीर्तन ध्यान की सामूहिक विधि है जिसमें भगवान के नामों का वाद्ययंत्रों के साथ उच्चस्वर में गायन किया जाता है। सैकड़ों की संख्या में लोगों ने नाम संकीर्तन यात्रा में भाग लिया। यात्रा समापन के पश्चात प्रसादम वितरित किया गया।
Updated by gaurav gupta