—इस्कॉन द्वारका में 30 मार्च को श्रीराम नवमी महोत्सव
—आस्था के प्रतीक हैं श्रीराम और उनकी जीवनगाथा
—क्रॉफ्ट्स वर्कशॉप में बच्चे बनाएँगे श्रीराम जैसा धनुष और खड़ाऊँ
—चित्रकूट के जल से होगा भगवान राम का महा अभिषेक
अपने जीवन की असफलता, निराशा और परेशानियों के लिए हम अकसर अपने सामने आने वाली चुनौतियों को दोष देते हैं और अपने ऊपर इसका भार नहीं लेना चाहते। परिवार, मित्रों या परिस्थितियों पर इन सबका दोष मढ़ना ही आज के युग के मानव की सोच है। इसीलिए बीते युग आज भी याद आते हैं, खासतौर से त्रेता युग, जिसमें अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र श्रीराम ने जन्म लिया और बाद में मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। क्षत्रिय होने के नाते महाराज दशरथ ने जहाँ कैकेयी को दिया अपना वचन निभाया, वहीं श्रीराम ने 14 वर्षों तक वन में रहने की अनेक चुनौतियों को स्वीकार करते हुए पुत्रवचन निभाया। ऐसे ही अवतारी पुरुष को अगर कलियुग में हम क्षण भर भी याद करते हैं, उनकी तसवीर को देखकर उनका नाम लेते हैं तो हमारे अंदर जीवन की चुनौतियों से लड़ने का साहस पैदा होता है। इस्कॉन द्वारका ने 30 मार्च रामनवमी के अवसर पर ऐसे दिव्य महापुरुष का जन्मदिवस मनाने का अवसर दिया है श्रीराम नवमी महोत्सव में। राम नवमी का त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह के नौवें दिन, नवमी पर शुक्ल पक्ष में पड़ता है। इस प्रकार इसे ‘चैत्र मास शुक्लपक्ष नवमी’ के रूप में भी जाना जाता है, और यह नौ दिवसीय चैत्र-नवरात्रि उत्सव के अंत का भी प्रतीक है। उल्लेखनीय है कि राम नवमी का त्योहार हिंदुओं द्वारा राम के जन्म के नौ दिनों के शुभ दिनों को याद करने के लिए मनाया जाता है।
फूलों और रंगों की रंगोली से सजे श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर में इस दिन शाम चार बजे से ही उत्सव की रौनक देखने को मिलेगी। क्रॉफ्ट्स वर्कशॉप के अंतर्गत बच्चों को श्रीराम का धनुष और खड़ाऊँ बनाना सिखाया जाएगा। शाम 6 बजे चित्रकूट व मंदाकिनी नदी के पावन जल से भगवान राम का महा अभिषेक किया जाएगा और बाद में यह जल प्रसादम भक्तों के लिए उपलब्ध होगा। इसके बाद महाभोग अर्पण होगा और तत्पश्चात महाआरती की जाएगी। फिर प्रसाद स्वरूप सभी भक्तों को दिव्य प्रसादम वितरित किया जाएगा।
इसी दिन प्रातः 8 बजे श्रीमद्भागवत पाठ में श्रीराम कथा का वर्णन किया जाएगा कि रघुपति राघव राजा राम से वे जगत के स्वामी भगवान रामचंद्र कैसे हुए! कैसे अंतर्यामी भगवान ने रावण को मार डाला! और अपने राज्य की राजधानी अयोध्या लौट आए। युगों-युगों से अब तक ऐसे पतित पावन सीता राम सबके रोम-रोम में आखिर क्यों बसे हैं! शास्त्र बताते हैं कि त्रेता युग में भगवान का रंग हरा था- हरित वर्णम् श्रीराम। वे वैदिक यज्ञों द्वारा पूजे जाते थे। आज भी उनकी पूजा की जाती है। भगवान के प्राकट्य दिवस पर सूर्यास्त तक उपवास रखा जाता है फिर उसके बाद एक अच्छे शाकाहारी भोजन से व्रत खोला जाता है। शाम 5 बजे मंदिर हॉल में छोटे बालक अभिनव अरोड़ा द्वारा ‘संक्षिप्त रामायण’ का पाठ भी किया जाएगा। वास्तव में रामकथा जब भी जिस रूप में, जितनी बार भी कही जाती है, लोग श्रद्धानवत होकर उसके रस में डूब जाते हैं। रामकथा यकीनन दुनिया की सबसे अधिक देखी-सुनी जाने वाली कथा होगी। एक ही लीला बार-बार देखने-सुनने का मन करता है। बुराई पर अच्छाई की जीत, सच्चाई, श्रद्धा, समर्पण, साहस और देश एवं संस्कृति की आस्था के प्रतीक हैं श्रीराम और उनकी जीवनगाथा। यही वजह है कि रामायण की प्राचीन कहानी और राम की कहानी बहुत लंबे समय से वैदिक संस्कृति का हिस्सा रही है।
इस्कॉन मंदिर में इस महोत्सव के प्रबंधक का कहना है कि भगवान राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं।
राम भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली अवतारों में से एक हैं, जो शक्तिशाली रावण को नष्ट करने के लिए प्रकट हुए थे। लगभग पचास दशक पूर्व अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस्कॉन के संस्थापक ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने भी श्रीराम पर अपना व्याख्यान देते हुए कहा कि– “यदि हम रामचंद्रजी के जीवन, उनकी गतिविधियों, लीलाओं का श्रवण करते हैं, तो इसका मतलब हम रामचंद्रजी के साथ जुड़े हुए हैं। उनके रूप, उनके नाम, उनकी लीलाओं और उनमें कोई अंतर नहीं है। वह निरपेक्ष हैं। इसलिए या तो आप राम के पवित्र नाम का जप करें या आप राम की मूर्ति को देखें या आप उनकी लीलाओं की बात करें, पारलौकिक लीलाएँ, सब कुछ, इसका अर्थ है कि आप भगवान के परम व्यक्तित्व के साथ जुड़ रहे हैं। इसलिए हम इन दिनों का लाभ उठाते हैं जब भगवान का आविर्भाव या तिरोभाव होता है, और हम उसके साथ जुड़ने का प्रयास करते हैं। उनकी संगति से हम अपनी चेतना को शुद्ध कर रहे हैं। हमारी प्रक्रिया शुद्धि है।” तो आप भी मंदिर में आइए और श्रीराम नवमी महोत्सव को मनाने का लाभ उठाएँ।
updated by gaurav gupta