इस्कॉन द्वारका में 26 मार्च को श्रीराम कीर्तन उत्सव  

—उत्सव में मायापुरी बैंड यानी ‘भक्ति ब्रदर्स’ की शानदार परफॉर्मेंस 

—भक्ति के सुरों के श्रवण में मिलेगी आत्मिक शांति

इस भौतिक संसार में आज मनुष्य अपने शारीरिक कष्टों से इतना पीड़ित नहीं है जितना कि मन से दुखी है। मन के संतापों को दूर करने का एकमात्र उपाय कीर्तन और श्रवण है। रामनवमी के अवसर पर भगवान श्रीराम की प्रसन्नता के लिए इस्कॉन द्वारका श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर में 26 मार्च को एक दिवसीय श्रीराम कीर्तन उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इसमें शाम 6 बजे सात समुंदर पार से आए मायापुरी बैंड के प्रमुख कीर्तनिया कृष्ण किशोर प्रभु अपनी शानदार प्रस्तुति से कीर्तन के महत्व को दिल्लीवासियों को बताएँगे। उनके साथ भक्ति ब्रदर्स के नाम से विख्यात अन्य दो कलाकार योगेंद्र प्रभु व आनंदमूर्ति प्रभु भी मृंदग-ढोल व करताल की थाप पर भक्ति सुरों की ताल से ताल मिलाएँगे।

गौरतलब है कि लगभग पिछले ढाई दशकों से हरि नाम संकीर्तन के प्रति समर्पित ये कलाकार देश-विदेश के कोने-कोने में विश्व शांति के लिए हरि नाम का प्रचार कर रहे हैं ताकि इस पवित्र नाम के श्रवण मात्र से लोगों को भौतिक जीवन के क्लेश, शोक, भय व दुखों से मुक्ति मिल सके। उनका मानना है कि संगीत की भाषा कोई भेदभाव नहीं करती है। उसका रिश्ता सिर्फ श्रोताओं के साथ होता है। अच्छे श्रोता संगीत का महत्व समझते हैं और हमारा साथ देते हैं।

पश्चिम बंगाल के एक छोटे से पवित्र गाँव मायापुर–चैतन्य महाप्रभु का जन्मस्थान, जहाँ से उनका कीर्तन आंदोलन शुरू हुआ था– के नाम पर उन्होंने अपने समूह का नामकरण किया और वे मायापुरी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका कहना है कि, ‘वे चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन आंदोलन से बेहद प्रभावित हैं। वे उनके अनुयायियों का भी ज्यों-का-त्यों अनुकरण करते हैं। उन्हें नरोत्तम दास ठाकुर और भक्तिविनोद ठाकुर के वैष्णव भजन गाना बेहद पसंद हैं। अगर श्रोताओं में श्रवण की क्षमता हो तो वे अविरल कई घंटों तक कीर्तन कर सकते हैं।’ यही वजह है कि मायापुरी बैंड के कलाकारों की ड्रम नृत्य कीर्तनिया शैली सुनने वालों को उत्साहित करने के साथ-साथ मन के भीतर तक दस्तक देती है और अपनी ऊर्जा से इस बात के लिए प्रेरित करती है कि हरि नाम अर्थात हरे कृष्ण महामंत्र–हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे– में असीम शक्ति है। अपनी प्रस्तुतियों से छोटे से गाँव से लेकर बड़े शहरों के मंचों तक लोगों को शांति सूत्र में पिरोते ये युवा कलाकार आत्मिक ऊर्जा प्रदान का एक उदाहरण हैं।

इस्कॉन मंदिर के वरिष्ठ प्रबंधक का कहना है कि इस कीर्तन उत्सव का उद्देश्य यह है कि मंदिर के आसपास व दूरदराज के सभी लोग इसमें भाग लें और इसका श्रवण करें जिससे उन्हें आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति हो सके। कृष्णभावनामृत को अपनाने के लिए कीर्तन सुनना अर्थात श्रवणम् अत्यंत महत्वपूर्ण है। कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप चैतन्य महाप्रभु ने भी बल देकर कहा कि यह श्रवण अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कलुषित आत्मा को धो डालता है, जिससे मनुष्य भक्ति में प्रवेश करने तथा कृष्णभावनामृत को समझने के योग्य बन जाता है। आज हर व्यक्ति को भौतिकवादी नहीं बल्कि कृष्णभावनाभावित होना चाहिए। इसके लिए कीर्तन श्रवण ही एकमात्र साधन है।

रामवमी के अवसर पर मंदिर में भक्तों के लिए विविध व्यंजनों के फूड स्टाल की भी व्यवस्था की गई है।

 

updated by gaurav gupta 

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