बनमनखी-सरसी
भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक माना गया है । स्कंदपुराण एवं भविष्योत्तर पुरान आदि में इस व्रत को करने से सौभाग्य की एवं पतिव्रत के संस्कारो को दर्शाया है ।इस व्रत में वट और सावित्री दोनो का विशिष्ट महत्व बताया गया है । पीपल की भांति वट वृक्ष को भी हिन्दू धर्म में विशेष स्थानप्राप्त है । धर्म ग्रंथो में बताया गया है कि वट वृक्ष में ब्रह्म विष्णु महेश तीनो का वास माना गया है । तथा वट सावित्री के दिन सुहागिन स्त्री वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करने एवं व्रत कथा सुनने से सभी मनोकामना पूरी होती है ।
वटसावित्री व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की आमावास्या तिथि को मनाया जाता है । यह व्रत सौभाग्य की कामना एवं संतान की प्राप्ति के लिए भी फलदायी माना गया है । इस व्रत को करने से स्त्री का सुहाग अचल रहता है । कहा गया है कि सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थतियों में हुआ था । कहते है कि भद्र देश के राजा अश्वपति को कोई संतान नही था। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए उनको वर्ष तपस्या की । जिससे प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने प्रकट होकर उन्हे पुत्री का वरदान दिया । तब जाकर राजा को पुत्री की प्राप्ति हुई । उस कन्या का नाम सावित्री रखा गया । सावित्री सभी गुणों से संपन्न कन्या थी । सावित्री बड़ी हो गई । जिसके वर नही मिलने के कारण सावित्री के पिता चिंतित रहते थे । एक बार उन्होंने अपनी पुत्री को वर तलाशने के लिए खुद को कहा । इस खोज में सावित्री एक वन पहुच गए । जहां उसकी भेंट साल्व देश के राजा द्युमत्सेन से हुई । द्युमत्सेन उसी तपोवन में रहते थे । क्योंकि उनका राज्य किसी ने छिन लिया था । सावित्री ने उनके पुत्र सत्यवान को देखकर उन्हे पति के रूप में वरन किया । सत्यवान गुणवान एवं धर्मात्मा थे । परंतु वो अल्पायु के थे । और एक वर्ष के बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी । यह बात सुनकर राजा अश्वपति का चेहरा दुखी हो गया । इसके बाद ऋषि नारद जी कहते है पुत्री सावित्री से बेटी ऐसे पुत्र से विवाह करना उचित नही है । इसलिए कोई और वर ढूंढ लो । इसके बाद सावित्री अपने पिता से कहती है पिता जी आर्य कन्याए अपने पति को एक बार ही चुनती है । तथा कन्यादान भी एक बार ही किया जाता है । इस बात को सुनकर दोनो का विधि-विधान के साथ विवाह संस्कार कर दिया गया । और सावित्री ससुराल चली गई । एवं सास-ससुर व पति की सेवा में लीन हो गए ।दिन-प्रतिदिन सत्यवान की मृत्यु नजदीक आने लगा इससे सावित्री दुखी होने लगी । तब जाके सावित्री तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिये । तब यमराज सत्यवान का प्राण हर के ले जाने लगा । तब जाके सावित्री पति की प्राण के लिए यमराज के चरण पर पति के प्राण के लिए गिर गया । और प्राण की भिक्षा मांगने लगी । लेकिन यमराज नही माना और सत्यवान की प्राण लेकर जाने लगा । पति भक्त सावित्री भी यमराज के पीछे लग गई । यमराज सावित्री को समझाने बुझाने लगा लेकिन सावित्री कुछ नही सुना । अंत में सावित्री अपने पति की प्राण लेकर वापस आ गई । इसी दिन से धरती पर हिन्दू धर्म में वट वृक्ष के नीचे वटसावित्री का पूजा-अर्चना होने लगा ।
इसी को देखते हुए बनमनखी अनुमंडल क्षेत्र बननमनखी के विशाल मंदिर तथा अन्य जगह पर, सरसी के सुमरन बाबा स्थान पर चिक्कू कुमारी, रिंकू सिंह, सोनम कुमारी, जूही सिंह, सोनी सिंह आदि, जानकीनगर में आज गुरुवार को महिलाओं ने अपने-अपने घरों में, चौक चौराहा के अलावे मंदिरों में हजारो हजार की संख्या में सुहागिन महिला ने वटवृक्ष के नीचे श्रद्धापूर्वक अपने अपने पति की दीर्घायु एवं सुहाग के लिए पूजा अर्चना की तथा वटवृक्ष में सभी महिलाओ ने पांच बार बेड देकर वटवृक्ष को त्रृपेक्षण दिया एवं वटवृक्ष को पंखा से होककर जल एवं प्रसाद चढ़ाकर घर वापस आ गई । अंत में सभी महिलाओं ने अपने घरों में पति को जल चढ़ाकर एवं पंखा होककर प्रणाम की और दो दिन के व्रत को तोड ली ।
अनुभवी आँखें न्यूज़ के लिए प्रफुल्ल सिंह की रिपोर्ट