भरगामा (अररिया) – यूं तो मिथिलांचल में भाई बहन के प्रेम के प्रतीक कई त्योहार है लेकिन उनमें से सामा- चकेवा काफी महत्वपूर्ण है। मिथिलांचल अपनी लोक सांस्कृति पर्व-त्योहार व पुनीत परंपरा के लिए प्रसिद्घ रहा है। इसी कड़ी में भाई-बहन के असीम स्नेह का प्रतीक लोक आस्था का पर्व सामा-चकेवा को लेकर भरगामा प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों में भी मिथिलांचल की प्रसिद्घ संस्कृति व कला का एक अंग सामा-चकेवा उत्सव धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। बताते चलें कि इस वर्ष यह पर्व 29 नवंबर रविवार के दिन पड़ा था। लेकिन हरेक वर्ष की भांति इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते बहनों ने कम मात्रा में सामा-चकेवा बनाई थी। लेकिन जो भी बहना सामा चकेवा बनाई थी। वो अपनी कला की प्रस्तुति दिखाने में कोई कमी व कसर नही छोड़ी। बहन लक्ष्मी सिंह,निधि सिंह,रचना देवी,रूचि सिंह,मधु सिंह,मीना देवी,काजल,नेहा,चुनमुन, मीनाक्षी आदि ने बताया कि हम लोग आस्था के महापर्व छठ व्रत खत्म होते ही सामा चकेवा पर्व की तैयारी में जुट गए थे। और काफी मेहनत से सामा,चकेवा,चुगला,सतभईयां आदि को बनाया। पंडित सुशील झा बताते हैं कि इस पर्व की चर्चा पुरानों में भी है। सामा-चकेवा पर्व की समाप्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन होती है। सामा-चकेवा पर्व के दौरान बहनें सामा,चकेवा,चुगला,सतभईयां को चंगेरा में सजाकर पारंपरिक लोकगीतों के जरिये भाईयों के लिए मंगलकामना करती है। सामा-चकेवा का उत्सव पारंपरिक लोकगीतों से है। संध्याकाल में गाम के अधिकारी तोहे बड़का भैया हो, छाऊर छाऊर छाऊर, चुगला कोठी छाऊर भैया कोठी चाऊर व साम चके साम चके अबिह हे, जोतला खेत में बैसिह हे से लेकर भैया जीअ हो युग युग जीअ हो आदि गीतों व जुमले से काफी मनोरंजन किया जाता है। रिपोर्ट – अंकित सििंह , updated by gaurav gupta 

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