गया(संवाददाता धीरज गुप्ता) – अफसर प्रशिक्षण अकादमी के विजय ऑडिटोरियम सिनेमा हॉल में प्रेरणादायक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर ब्रिगेडियर सुधीर कुमार,कमांडिंग ऑफिसर कर्नल जयेश के अर्धवायू,कमांडिंग ऑफिसर कर्नल दीपचंद,एडम अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल हरनेक सिंह,मेजर अंजू यादव सहित ओटीए के विभिन्न विभागों के अधिकारी मौजूद थे इस कार्यक्रम में कारगिल युद्ध के नायक रहे मेजर देवेंद्र पाल सिंह ने कारगिल युद्ध पर 6 एवं 27 बिहार बटालियन एनसीसी कैडेटों,आर्मी पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों और ओटीए परिवार के लोगों को बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान भी वे पड़ोसी मुल्क के सैनिकों के मोर्टार हमले में बुरी तरह जख्मी हुए थे एक गोला ठीक उनसे 4-5 फीट की दूरी पर गिरा और उसके छर्रे उनके पूरे शरीर में धंस गए हैं शरीर से काफी खून बह गया और उनके साथी उन्हें अस्पताल ले गए।मेजर सिंह ने बताया कि अस्पताल में एक डॉक्टर ने तो यहां तक कह दिया था कि ये मर चुका है लेकिन एक अन्य डॉक्टर ने मेरे भीतर जिंदगी देखी और फिर इलाज शुरू हो गया है लगातार कई महीने आईसीयू में रहने सहित लगभग सालभर अस्पताल में पड़ा रहा है उन्होंने कहा कि अस्पताल से निकलने के बाद से लेकर आज ब्लेड रनर बनने तक के सफर में कई कठिन पड़ाव आए, लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति के जरिए कदम-दर-कदम वे आगे बढ़ते गए और हर चुनौती का सामना किया।
कारगिल युद्ध के नायक रहे मेजर डीपी सिंह ने गंभीर रूप से जख्मी होने और दाहिना पैर गंवाने के बावजूद जिंदगी से हार नहीं मानी है आज वे भारत के अग्रणी ब्लेड रनर कृत्रिम पैरों की मदद से दौड़ने वाले धावक हैं मेजर सिंह का कहना है कि बचपन से अब तक उन्हें जब-जब तिरस्कार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके हौसले और मुश्किलों से हार न मानने का जज्बा मजबूत होता चला गया।
मेजर सिंह ने कहा कि कई बार ऐसे मौके आए, जब दौड़ते वक्त पीड़ा हुई और शरीर में इतने जख्म थे कि दौड़ते से उनसे अकसर खून रिसने लगता था लेकिन मैंने हार नहीं मानी और पहले केवल चला, फिर तेज चला और फिर दौड़ने लगा है लगातार तीन बार मैराथन दौड़ चुके मेजर सिंह ने कहा कि उन्हें सेना ने कृत्रिम पैर दिलाए, जिन्हें हम ‘ब्लेड प्रोस्थेसिस’ कहते हैं इस कृत्रिम पैर का निर्माण भारत में नहीं होता और ये पश्चिमी देशों से मंगाने पड़ते हैं ऐसे एक पैर की कीमत साढ़े 4 लाख रुपए है और उन्होंने कहा कि इन पैरों की इतनी अधिक कीमत देखते हुए सरकार को इस तरह की प्रौद्योगिकी और डिजाइन वाले पैर भारत में बनाने पर गौर करना चाहिए। इस संबंध में उन्होंने सरकार का दरवाजा भी खटखटाया है दो बार लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज करा चुके मेजर सिंह को विकलांग,शारीरिक रूप से अक्षम या अशक्त कहे जाने पर सख्त आपत्ति है वे खुद को और अपने जैसे अन्य लोगों को चुनौती देने वाला कहलाना पसंद करते हैं उन्होंने ऐसे लोगों के लिए एक संस्था चला रहे हैं- ‘दि चैलेंजिंग वंस’ और किसी वजह से पैर गंवा देने वाले लोगों को कृत्रिम अंगों के जरिए धावक बनने की प्रेरणा दे रहे हैं वे जीवन की कठिन से कठिन परिस्थिति से जूझने को तैयार हैं और उसे चुनौती के रूप में लेते हैं। updated by gaurav gupta

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