हिंदू धर्म के वैदिक ग्रंथों में 16 तरह के संस्कार बताए गए हैं। जिनमें से मृत्यु भी एक संस्कार है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी मृत देह को बांस से बनी लकड़ी पर ही रखा जाता है।

दरअसल, बांस की लकड़ी पर्यावरण संतुलन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बांस की लकड़ी में लेड और कई प्रकार के भारी धातु होते हैं जो जलने के बाद अपने ऑक्साइड बनाते हैं।

लेड जलकर लेड ऑक्साइड बनाते हैं जो न सिर्फ वातावरण को दूषित करता है बल्कि यह इतना खतरनाक है कि आपकी सांसों में जाकर लिवर और न्यूरो संबंधित परेशानियां भी दे सकता है।

इसलिए करते हैं अर्थी में प्रयोग

जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसका शरीर बहुत भारी हो जाता है। ऐसे में बांस की पतली कमानियों से शैय्या तैयार करना भी आसान होता है, इसलिए अर्थी में इसका इस्तेमाल किया जाता है लेकिन बांस को जलाया नहीं जाता है।

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