*कैसे जीना होता है ज्ञानी को ?-(रामखिलाड़ी शर्मा जर्नलिस्ट*)
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सचमुच ज्ञान की धारणा हो जाने पर सबसे पहले मन बंधन-मुक्त हो जाता है।
किसी की याद फिर आकर्षित नहीं करती।
मन और बुद्धि एक साथ समय की धारा के साथ बहने लगते हैं।
Spontaneous हो जाता है ज्ञानी।
उसकी निशानी होती है कि किसी भी अवस्था में उसकी मुस्कुराहट कोई छीन नहीं पाता।
उसकी ख़ुशी की अवस्था कभी डांवाडोल नहीं होती।
क्यूंकी किसी की बारे में चिंतन चलता ही नहीं।
पूरा ज्ञानी कोई योजना नहीं बनाता, जो सामने हो उसी कार्य से सेवा करता है।
या जो सेवा दी जाए निरसंकल्प होकर वो सेवा करता है।
उसकी सारी योजनायें परमात्मा के द्वारा स्वतः प्रेरित होती हैं।
चाहे वो गृहस्थी हो, कुमार हो , कुमारी हो या समर्पित हो ,
उसका मन और बुद्धि किसी के मोह में नहीं फंसते ।
ये अवस्था वास्तव में बहुत नाज़ुक होती है क्योंकि बहुत आसानी से मन समझा देता है कि अब मेरा तो एक परमात्मा दूसरा ना कोई।
अगर यहां भूल हुई तो धीरे-धीरे स्वयं को निर्मोही समझ कर व्यवहार में रूखापन आ जाता है, ये अवस्था बहुत धोखा देती है, सेवा करते हैं या समर्पित हैं तो सब सम्मान करते हैं कोई टोकता नहीं लेकिन बहुत जल्द अकेले पड़ जाते हैं, मन ज़िद्दी हो जाता है, ज्ञानी हैं, समर्पित हैं, सेवा करते हैं ये सोचकर झुकने को तैयार नहीं होते फिर शिकायतों का सिलसिला शुरू हो जाता है फिर शायद सबसे ओम शांति ।
इसीलिए मोहजीत के अर्थ को उचित रीति समझना आवश्यक है।
अगर सच में निर्मोही हो गए , मोह को जीत लिया तो होता क्या है?
मोहजीत या निर्मोही का अर्थ क्या है?
मोहजीत का अर्थ होता है, सारी शक्ति जो रिश्तों में, गृहस्थ में ,कार्य-व्यवहार में व्यय होती थी वो एक धारा बनाकर एक परमात्मा की तरफ बहने लगती है,
यही निर्बंधन की अवस्था भी लेकिन एक सच्चा बंधन तो रहता ही है, जो ईश्वर से जुड़ जाता है, दुनिया से सारी गिरहें खोल कर एक प्यार की डोर परमात्मा से बांध ली,
ये ऐसा ही है जैसे
जब किसी से प्यार हो जाता है।
क्या होता है जब किसी से प्रेम होता है ?
दिल करता है बस उसके बारे में ही सोचते रहें जिससे प्यार हो जाता है।
कोई आपको बताये की देखो ये जो इंसान सामने से जा रहा है ना ये उसका चाचा है जिससे आप प्रेम करते हो।
क्या होता है जब प्रियतम के चाचा आपको देखने लगे, आप एक दूसरे को जानते भी नहीं लेकिन प्रियतम के घर के सदस्य को देखते ही आपके अंदर अजीब सी खुशी, अजीब सा अपनापन उनके लिए छलकने लगता है, आपके देखने, खड़े होने , बोलचाल की अवस्था बदल जाती है,
आप आइसक्रीम खाने जाओ कोई कह दे उनको तो मैंगो फ्लेवर पसंद है तुरंत आप चाहेगे मैं भी उनकी पसंद का खाऊँ,
जिससे प्रेम हो, उसकी हर पसंद से प्यार हो जाता है।
कोई ऐसा हो, जिसकी आप पहले सूरत भी देखना पसंद नहीं करते, लेकिन जब हम प्रेम के अहसास में होते हैं, ऐसे व्यक्ति को भी देख मुस्कुरा देते हैं, जिसकी तरफ पहले नज़र भी उठाने का भी मन न हो।
*क्यूं होता है ऐसा ?*
क्यूंकि मन अब उसमें रम गया जिससे प्रेम हो, सारी ऊर्जा उसकी और बहने लगती है, सबको माफ कर देने का मन होता है।
बस यही ज्ञान में मोहजीत होना है।
परमात्मा के प्रेम में है तो उसका सारा परिवार अच्छा लगता है, किसी की तरफ घृणा का भाव नहीं जाता क्यूँकि आंखों में तो परमात्मा की तस्वीर है ,उनसे नज़र हटे तो कुछ देखें ना।
फिर तो बस ।
जिधर देखूं तेरी तस्वीर नज़र आती है।
बस फिर ये हिन्दू उसी का है, जिससे प्यार है तो वो भी अपना।
मुसलमान भी उसका जिससे प्यार है, तो मुसलमान भी अपना।
सारी दुनिया उसी का परिवार है, जिससे आप प्यार करते हो, तो सारी दुनिया अपना परिवार हो जाती है, जो कलतक अंजान थी वो सारी दुनिया अपनी हो गई अब।
तो निर्मोही होने का अर्थ है कि अब सब अपने हैं, सब प्यारे हैं, सब अच्छे हैं क्योंकि उसके हैं जिससे हमें प्यार है।
दादियों के सब अपने हैं ना,
शिवानी दीदी के सब अपने हैं ना।
या कोई है जिसके लिए उनके मन में स्नेह नहीं है? शुभभावना नहीं है ?
कोई है ऐसा ?
नहीं ना ।
बस यही निर्मोही होने की अवस्था है,
कि प्रेम की डोर परमात्मा से बंधी तो सारा विश्व उसमें बंध गया।। *रामखिलाड़ी शर्मा जर्नलिस्ट* , updated by gaurav gupta