लखनऊ ।यादों के झरोखे से मुझे याद है दशहरे में मेरे गांव में दुश्मनों के भी दिल मिलते थे। मुझे वो दिन याद है जब दुश्मनी भूल कर लोग दशहरे मे गले मिलते थे। वह सपना हो चला मुझे अजमल साहब की वह कबिता याद आ रही है मैं ढूँढ रहा हूँ अपना वह देश. वह फिर भी नहीं मिल रहा है। दशहरे के दिन आपस में लोग मिल कर एक दूसरे को पांन का बिडा खिलाते थे और निंलकंठ के दर्शन हेतू जंगल में एक साथ जाते थे। अब ना जंगल रहा ना नीलकंठ।
. मशिनी करण के युग में अब दशहरा कैसे मनाया जाए? क्यों की गांव गोद लिये जानें लगे बिकाश की धारा ने विनाश का वह तांडव नांच किया चारो तरफ कंक्रीट के जंगल दिखाई पड रहे हैं। गांव का स्वरूप नष्ट हो गया है मानवता सिसक रही है हर इंसान धन के पीछे दौड रहा है। राज नेता कैसे सत्ता में बना रहे यह उपक्रम कर रहा है.। जाने कहाँ गए वह दिन। ःअनुभवीआंखें न्यूज के लिए ब्यूरो चीफ असलम परवेज की कलम से।
जाने कहां गए वो बीते दशहरे के गौरवमयी दिन
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