नई दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल अब चंद दिन बचे हैं. कांग्रेस को सरकार और विपक्ष में रहते हुए लंबे समय तक मुश्किलों से निकालने के बाद प्रणब मुखर्जी 22 जुलाई 2012 को राष्ट्रपति बने थे. उनका कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा होने वाला है. ऐसे में स्वभाविक है कि पूरा देश प्रणब मुखर्जी को उन्हें उनके कामों के लिए याद करेंगे. आम लोगों के बीच राष्ट्रपति को लेकर इस बात चर्चा ज्यादा होती है कि उन्होंने किसकी फांसी की सजा माफ की और किसकी नहीं. ऐसे में हम भी आपको प्रणब मुखर्जी के पूरे कार्यकाल के अन्य राजकाज के कामों के बजाय फांसी पर लिए गए उनके फैसले के बारे में ब्रीफ कर रहे हैं.
कसाब-अफजल जैसे आतंकियों पर नहीं की रहम
प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में मुंबई के 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु और 1993 मुंबई बम धमाके के दोषी याकूब मेनन की फांसी की सजा पर फौरन मुहर लगा दी. यानी प्रणब इस रूप में याद किए जाएंगे उन्होंने बतौर राष्ट्रपति तीन बड़े आतंकी अजमल, अफजल और याकूब को फांसी दिलाने में अहम रोल निभाया. कसाब को 2012, अफजल गुरु को 2013 और याकूब मेनन को 2015 में फांसी हुई थी.
37 खूंखार अपराधियों पर नहीं की दया
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास पूरे कार्यकाल में करीब 37 क्षमायाचिका आए, जिसमें उन्होंने ज्यादातर में कोर्ट की सजा को बरकरार रखा. रेयरेस्ट ऑफ रेयर अपराध के लिए फांसी की सजा दी जाती है. राष्ट्रपति ने 28 अपराधियों की फांसी को बरकरार रखा. कार्यकाल की समाप्ति के पहले मई महीने में भी प्रणब मुखर्जी ने रेप के दो मामलों में दोषियों को क्षमा देने से मना कर दिया. एक मामला इंदौर का था और दूसरा पुणे का.
चार लोगों को दिया जीवनदान
पूरे कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी ने चार दया याचिका पर फांसी को उम्रकैद में बदला. ये बिहार में 1992 में अगड़ी जाति के 34 लोगों की हत्या के मामले में दोषी थे. राष्ट्रपति ने 2017 नववर्ष पर कृष्णा मोची, नन्हे लाल मोची, वीर कुंवर पासवान और धर्मेन्द्र सिंह उर्फ धारू सिंह की फांसी की सजा को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील कर दिया.
कलाम साहब के कार्यकाल में एक फांसी
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम यूं तो फांसी की सजा के पक्षधर नहीं थे. उन्होंने इस बात का जिक्र कई बार अपने संबोधन में किया था, लेकिन जब बच्चों के साथ रेप के दोषी धनंजय का मामला उनके पास आया तो उन्होंने उसकी फांसी बरकरार रखी. धनंजय चटर्जी को 2004 में फांसी दी गई. दो मामलों को छोड़कर ज्यादातर पर उन्होंने कोई फैसला ही नहीं लिया. इसके अलावा पत्नी, दो बच्चों और साले की हत्या के दोषी पाए गए जयपुर के खेराज राम की सजा को कलाम ने 2006 में उम्रकैद में बदला.
प्रतिभा पाटिल ने सबकी फांसी टाल दी
यूपीए के कार्यकाल में राष्ट्रपति रहीं प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 30 दया याचिकाएं स्वीकार की. उन्होंने सरकार से फांसी की सजा खत्म करने के लिए पहल करने को भी कहा था. वहीं आर वेंकटरमण ने सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने का रिकॉर्ड है. उन्होंने 1987 से 1992 के बीच 44 याचिकाएं खारिज की.