जैसा की हम सभी को पता है की हमारा देश आस्था श्रद्धा और विश्वास का प्रतिक माना जाता है। देश में हमारी आस्था ही है जो हमें मस्जिद और मंदिर जाने पर देवी देवता और भगवान के होने का एहसास दिलाता है ! हमारी आस्था के कारन ही आज सम्पूर्ण समाज पीपल के पेड़ में ब्रह्म देवता और नीम में देवी तथा बबूल के पेड़ में प्रेत नजर आता हैं। इसी आस्था श्रद्धा विश्वास के चलते ही रिश्तों का निर्धारण और अनुपालन होता है।आज हमारी धार्मिक आस्था खुशियों से जुड़ा हुआ एक और महापर्व है जिसे हम और आप देव उत्थानी एकादशी और छोटी दीपावली भी कहते हैं।आज के दिन ही हम गन्ने की फसल को तैयार मानकर उसमें कटान लगाकर उसे देवी देवताओं और विष्णु भगवान को समर्पित कर शुभ कार्य की शुरूवात करते हैं। आज के दिन देव उत्थानी एकादशी के व्रत पूजा पाठ का विशेष महत्व माना गया है और आज ही शाभ को पूजा पाठ करने के बाद बड़ी बड़ी मशालें बनाकर गांव के बाहर उसमें आग लगाकर “हड़ा हड़वाई” हवा हवाई खेलकर वातावरण को शुद्ध एवं कीटमुक्त करते हैं। इतना ही नहीं कल ब्रह्म महूर्त में अनाज साफ करने वाले सूप को गन्ने के डंडे से पीट पीट घर के अंदर बाहर हर जगह की दरिद्रता को दूर भगाकर भगवान लक्ष्मी के आने की कामना कर के प्रसन्नता का अनुभव करते हैं ! यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन चार महीनों की नींद से जागते हैं। और भगवान विष्णु देवशयानी एकादशी पर सोने का आरम्भ करते है। प्रबोधिनी एकदशी का दिन चतुर्मास के अंत का प्रतीक है और सारे शुभकार्यों की शुरुआत हो जाती है !

* यह माना जाता है कि भगवान विष्णु ने इस दिन देवी तुलसी से विवाह किया था।
*हिन्दू पंचांग के अनुसार साल 2017 में प्रबोधिनी एकादशी व्रत, 31 अक्टूबर को मनाया जायेगा !

*प्रबोधिनी एकादशी व्रत विधी
प्रबोधिनी एकादशी के दौरान की जानी वाली पूजा विधि उसी प्रकार की होती है जो दूसरी तरह की एकादशी के समय की जाती है। पद्म पुराण में एकादशी व्रत से संबंधित सभी नियमों और कथा आदि का वर्णन होता है। पद्म पुराण के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर पवित्र होना चाहिए। इसके बाद फल, फूल, कपूर, अरगजा, कुमकुम, तुलसी आदि से भगवान विष्णु की पूजा श्रद्धा व् नियम से करनी चाहिए।

*प्रबोधिनी एकादशी व्रत वाले दिन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के विविध मंत्र पढ़े जाते हैं। इस दिन नैवेद्य के रूप में विष्णु जी को ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा आदि अर्पित करने चाहिए। और उपवास करके रात में सोते हुए भगवान हरि विष्णु जी को गीत आदि गाकर जगाना चाहिए। प्रबोधिनी एकदशी के दिन, भक्त भगवान विष्णु की भक्ति के साथ पूजा करते हैं और पूरे दिन उनके नाम के मंत्र का जाप करते हैं!

*इसके बाद रात बीतने पर दूसरे दिन सवेरे स्नान आदि नित्यकर्मों के बाद श्री हरि की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करा कर उन्हें दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। अंत में भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए। जो लोग पूरे दिन व्रत नहीं रख सकते हैं वे फल और दूध खा कर और पूरे दिन चावल और अन्य अनाज ना खा कर आंशिक व्रत रख सकते है।

*तुलसी का विशेष महत्त्व
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्तों का विशेष महत्त्व होता है। कई लोग इस दिन तुलसी विवाह भी करते हैं जिसमें विष्णु जी के स्वरूप शालिग्राम जी और तुलसी जी का विवाह कराया जाता है।

*प्रबोधिनी एकादशी व्रत का महत्त्व
*प्रबोधिनी एकादशी व्रत का मान्यता है कि प्रबोधिनी एकादशी व्रत करने से अश्वमेध तथा सौ यज्ञों का फल मिलता है। इस पुण्य व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है ! तथा वह स्वर्ग प्राप्त करता है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन जप, तप, गंगा स्नान, दान, होम आदि करने से अक्षय फल प्राप्त होता है।

*प्रबोधिनी एकदशी व्रत कथा
*पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु की नींद अनियमित थी। कभी-कभी वह महीनों के लिए जागते रहते थे और कभी-कभी कई महीनों तक लगातार सोते ही रहते थे। इससे देवी लक्ष्मी नाखुश थी।
यहां तक ​​कि भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा, देवों और सन्यासियों को भगवान विष्णु के दर्शन के लिए लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, जबकि भगवान विष्णु सो रहे होते थे । यहाँ तक की राक्षस भगवान विष्णु की नींद की अवधि का लाभ लेते थे और मनुष्यों पर अत्याचार करते थे और धरती पर अधर्म फेल रहा था।

*एक दिन जब भगवान विष्णु नींद से जागे तो उन्होंने देवों और संतों को देखा जो उनसे सहायता मांग रहे थे। उन्होंने भगवान विष्णु को बताया कि शंख्यायण नाम का दानव सभी वेदों को चुरा लिया था ! जिससे लोग ज्ञान से वंचित हो गए थे। भगवान विष्णु ने वेदों को वापस लाने का वादा किया इसके बाद वह दानव शंख्यायण के साथ कई दिनों तक लड़े और वेद वापस लेकर आये ! इस तरह भगवान विष्णु इस लडाई के बाद जागते रहे और उन्होंने अपनी नींद को चार महीनों रखने का प्रण लिया।

ऐसा कहा जाता है की एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए ! एकादशी के दिन चावल खाने से अगला जन्म कीड़े के रूप में होता है ! 

प्रबोधिनी एकदशी मंत्र
*ओम नमो भगवत् वासुदेवाया मंत्र, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम या विष्णु अश्तोत्ताराम जैसे शुभ विष्णु मंत्र और स्लोकाओं का उच्चारण करना चाहिए।

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