मधेपुरा – (सवांददाता चंचल कुमार) – बिहार समेत पूरे जिले में मनाने वाला लोक आस्था का महापर्व चैट को लेकर मधेपुरा जिले में छठव्रतियों द्वारा दिया अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य।

छठ को लेकर प्रशासन पूरी मुस्तैद थी।भीड़ -भाड़ वाली जगहों समेत सभी जगह पर मजिस्ट्रेट पुलिस पदाधिकारी समेत पुरुष व महिला पुलिस बल तैनात किए गए हैं।

छठ घाटों का जायज़ा लगातार देखे गए नगर पंचायत मुख्य पार्षद श्वेत कमल उर्फ बौआ यादव ।वही प्रशासन के द्वारा भी लगातार सभी घाटों का जायजा लिया गया,जिसमें मुरलीगंज अंचलाधिकारी शशिभूषण कुमार,कार्यपालिक पदाधिकारी ,प्रखंड विकास पदाधिकारी ललन कुमार चौधरी, मुरलीगंज थानाध्यक्ष संजीव कुमार ने सभी छठ घाटों का जायज़ा लिया।

आई जानते हैं क्या है छठ पर्व का इतिहास।

बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं।धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है। छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है।

त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। परवातिन नामक मुख्य उपासक (संस्कृत पार्व से, जिसका मतलब ‘अवसर’ या ‘त्यौहार’) आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री – पुरुष – बुढ़े – जवान सभी लोग करते हैं।कुछ भक्त नदी के किनारों के लिए सिर के रूप में एक प्रोस्टेशन मार्च भी करते हैं।

 

पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्यौहार है।यह त्यौहार नेपाली और भारतीय लोगों द्वारा अपने डायस्पोरा के साथ मनाया जाता है।

 

शुरुआत

 

देव सूर्य मंदिर Deo Surya Mandir World Top Sun Temple in Deo Aurangabad Bihar

मान्यता है की देव माता अदिति ने की थी छठ पूजा। एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।

भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है। updated by gaurav gupta

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