बनमनखी(पूर्णियां) – साहब कोरोना का भय नहीं है दर्द है जो दिलों से दिमाग से निकलता ही नहीं जी हां पूर्णिया जिले के बनमनखी में दर-दर भटक रहे हैं पिता और पत्नी यानी एक दंपत्ति बताया जाता है कि दंपत्ति अपने बेटे के दिए जख्म को तिल तिल कर जी रहे हैं उन्हें नहीं है पता लोग डाउन क्या होता है उन्हें पता नहीं कोरोना कौन सी महामारी है उससे भी अज्ञान है वजह साफ है कि अपनों के लिए दर्द उनके सीने में इस तरह उम्र रहा है कि मानो कब आंखों से आंसू निकल पड़े और इस पीड़ा में क्या कुछ समाज में घट रहा है उनको लिए मायने नहीं रखता। बनमनखी अनुमंडल में भटकते भटकते पहुंचे यह दंपत्ति आखिरकार आंसुओं के सैलाब के साथ जिंदगी बसर क्यों कर रहे हैं अपने ही बेटे द्वारा निकाल दिए गए और उसी जख्म से तिल तिल कर यहां जीने को मजबूर है भीख पर पल रही है उनकी जिंदगी। और बावजूद इसके वह प्लेटफार्म पर आसरा लेने को मजबूर हैं और हालात यह हैं कि आंखों में आंसू और सीने में दर्द का तूफ़ान लिए कोरोना से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं आज जो तस्वीर आप देख रहे हैं उसमें आप इस बात को महसूस कीजिए कि जिस बच्चे को आप पालते हैं वही आज आपको बेघर कर दे घर से निकाल दें फिर आप अगर भीख पर गुजर-बसर करना शुरू करें तो आपको संगे ऐसे बच्चे को ऐसे बच्चे की लालत है जो अपने बूढ़े मां-बाप को घर से बेघर कर देते हैं यह तस्वीर बयां करती है एक ऐसा कि जिसे बच्चे अपने तत्कालिक स्वाभिमान के चलते बूढ़े मां-बाप को दरकिनार कर देते हैं पूर्णिया जिले के बनमनखी में यह दंपति भटकते भटकते समस्तीपुर से बनमनखी पहुचें और समस्तीपुर से आने के बाद उनकी जिंदगी स्टेशन पर पल रही है ऐसे में मीडिया के पत्रकार जब वहां पहुंचे तो अपनी पीड़ा बयां कर बैठे उन्होंने कहा कि हमें कोरोना का भय नहीं डर है तो सिर्फ अपने बच्चों से ठुकराए जाने का पीड़ा है तो सिर्फ अपने बेटे से घर से निकाले जाने का पीड़ा। महामारी के इस समय जब यह दंपत्ति बनमनखी में भटक रहे हैं तब उनकी सहायता के लिए प्रशासनिक और सामाजिक दो हाथ क्यों नहीं बढ़ रहे आखिर क्यों। रिपोर्ट – गौरव गुप्ता

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