बनमनखी – पूणियां जिला के बनमनखी अनुमंडल का क्षेत्र ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है! बनमनखी धरहरा स्थित सिकलीगढ़ का क्षेत्र जो कई राजवंशों के इतिहास को अपने में समेटे हुए है, पुरातत्ववेत्ताओं की आज भी बाट जोह रहा है! यहाँ की प्राचीन, पुरानी ईंटें और प्राप्त छोटी बड़ी मुर्तियाँ खुदाई और खोज के लिए हमें सर्वदा आमंत्रित करती रहती हैं! इस गढ़ का प्रत्येक भाग 25 फीट ऊँचा और 700 फीट लम्बा है! यहाँ उत्तर – पश्चिम कोने में माणिक स्तम्भ नामक अखंडित स्तम्भ है जो पर्याप्त मोटा तथा अपरिष्कृत है! इसका स्वरूप वाराणसी में उपलब्ध गाजीपुर अभिलेख स्तम्भ सा है! यह लाल बलुवे पत्थर का स्तम्भ हल्की लालिमा के संग चमकीला ग्रेनाइट है! वर्तमान में यह प्रह्लाद स्तम्भ के नाम से प्रसिद्ध लोगों के धार्मिक आस्था का केन्द्र बन गया है!

 

डॉ. गुप्ता ने बताया की धीमेश्वरनाथ (उग्रेशनाथ) महादेव मंदिर में उपस्थित शिवलिंग मनोकामना पूर्ण करने वाला है! यह शिवलिंग पारदर्शी ग्रेनाइट से बना इतना सुन्दर और चिकना है कि पूरे भारतवर्ष में इस तरह का शिवलिंग केवल रामेश्वरम में ही है! भारतवर्ष में स्थित 52 शक्तिपीठों में माँ आदि शक्ति के हृदय गिरने का वर्णन पौराणिक कथाओं में है, वो बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा से थोड़ी दूर सटे उत्तर – पूरब माँ आदि शक्ति अवस्थित है जो हृदेश्वरी दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है!

इसके आलावा महान संतो ने भारत भूमि में जो परम्परा कायम की थी, उसी की एक कड़ी बनकर भारत के महान संत महर्षि मेही परमहंस जी महाराज का उदय भी इसी सिकलीगढ़ की घाटी में हुआ! जिनके द्वारा प्रचारित संतमत सत्संग का प्रसार विश्वव्यापी हो चुका है! इतने सारे ऐतिहासिक पुरतात्विक एवं धार्मिक स्थल होने के कारण ही हमने सिकलीगढ़ धरहरा को राजकीय धरोहर में शामिल कर संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की बात कही है ताकि अपना बनमनखी विश्व के मानचित्र पर अंकित हो सके और आनेवाली पीढियाँ इस पर गर्व कर सके!

डॉ. गुप्ता ने इन सभी जगहों को पर्यटन सर्किट की तरह एक दूसरे से जोड़ने की मांग की है जिससे बनमनखी को एक नयी पहचान दिलाई जा सके! updated by gaurav gupta

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