बनमनखी ने खो दिया अपनी पुरानी पहचान। कभी एशिया का अत्याधुनिक चीनी मिल के लिए जाना जाता था.
फिर यही चीनी मिल नेताओं के सत्ता में आने का कारण भी बना और अंततः अस्तित्व की लड़ाई लडते लडते आज दाह संस्कार भी हो रहा है।
जिस जमीन पर सीना ताने बनमनखी चीनी मिल खड़ा था वह अब नेस्तनाबूद हो गया। नेताओं की कू मंशा की भेंट चढ़ गया। बनमनखी चीनी को हटाया जा रहा है।
कटर से लोहे नहीं किसानों और बेरोजगार लोगों की रोजी रोटी काटा जा रहा है। भले ही कितने ही उधोग खड़े हो जाइए यहां पर लेकिन सिमांचल के लोगों के लिए बनमनखी चीनी मिल को भुला पाना संभव नहीं होगा।
विडंबना देखिए बिहार के ठेकेदार नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के ठेकेदार यहां लोहा काट कर मौज कर रहे हैं।
हाय रही बिहार की किस्मत। लुटते पिटते चीनी मिल को बस हम सब बेबस देख रहे हैं। अपने बच्चों को यह भी नहीं बता सकते की कभी यहां आधुनिक चीनी मिल हुआ करता था उसके अस्तित्व की एक – एक सबूत मिटाया जा रहा है।
आज आधुनिकता का लबादा ओढ़ कर हम सब स्वार्थी हो गए हैं। देखते रहिए बनमनखी को उजड़ते हुए। यहां से बडे बडे व्यवसायी बोरिया-बिस्तर समेट कर चले गए। व्यापार ठप्प हो गया। पशुओं का बड़ा बाजार सीमित हो गया। खरीद बिक्री कम हो गया। सब कुछ तबाह और हम बस ढोल पीटने के सिवाय कुछ भी नहीं कर सके।
– *संतोष गुप्ता, मुख्य संपादक*