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*रामखिलाड़ी शर्मा जर्नलिस्ट ✍✍✍✍✍✍✍*
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तीस हजारी अदालत में वकीलों के साथ झड़प के बाद मंगलवार को पुलिस मुख्यालय के बाहर पुलिसकर्मियों के धरने को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है। इस मामले में दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों पर गाज गिर सकती है।
गृहमंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पुलिसकर्मियों को अपनी शिकायत को सही जगह और सही तरीके से उठाना चाहिए था। वहीं गृहमंत्रालय इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों और वकीलों के खिलाफ बिना किसी भेदभाव के कार्रवाई सुनिश्चित करने के पक्ष में है।
पुलिसकर्मियों के धरने से नाराज गृहमंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘पुलिसकर्मियों की मांग जायज हो सकती है, लेकिन उन्हें इसे उचित तरीके से उठाना जरूरी है।
हम एक अनुशासित बल में भीड़ की मानसिकता पनपने नहीं दे सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि स्थिति की गंभीरता को समझने और उसे सही समय पर नियंत्रित करने में दिल्ली पुलिस का नेतृत्व बुरी तरह विफल रहा है।
जाहिर है उनका इशारा जल्द ही दिल्ली पुलिस में वरिष्ठ अधिकारियों के फेरबदल किये जाने की ओर था।वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पुलिस एक अनिवार्य सेवा के अंतर्गत आता है और इसके तहत किसी स्थिति में उन्हें अपनी सेवा देने की बाध्यता है। कानून-व्यवस्था संभालने के कारण पुलिस की जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाती है। दूसरी तरफ अदालत में अपनी जिम्मेदारी निभाने वाले वकीलों में भी भीड़ की मानसिकता उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि तीस हजारी कोर्ट मामले में जिम्मेदार पुलिसकर्मियों और वकीलों दोनों के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है।
वहीं दिल्ली पुलिस की ओर से तीस हजारी अदालत की घटना की विस्तृत रिपोर्ट गृहमंत्रालय को भेजी गई है। इसमें शनिवार को पुलिसकर्मियों और वकीलों के बीच झड़प शुरू होने की परिस्थितियों और उसके बाद उठाए गए कदमों के बारे में बताया गया है। लेकिन इसमें शनिवार के बाद की घटनाओं के बारे में नहीं बताया गया है। जाहिर सोमवार को साकेत कोर्ट के बाहर एक पुलिसकर्मी के साथ हुई मारपीट का भी जिक्र नहीं है।
पूरी घटना पर नजर रख रहे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि फिलहाल इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यायिक जांच का आदेश दिया गया है और उसकी रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए। हाईकोर्ट ने रविवार को छह हफ्ते में न्यायिक जांच पूरी करने का निर्देश दिया था। इस बीच सोमवार को दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर पुलिसकर्मियों और उनके परिवार के सदस्यों के धरने को देखते हुए गृहमंत्रालय को ओर दिल्ली के उपराज्यपाल को हस्तक्षेप करने को कहा गया।
इस घटना में प्रबुद्ध जन अभिभाषक वर्ग ने अपना आपा खो दिया जो बहुत कष्ट प्रद हैं।वो तबका जो न्याय पालिका से जुड़ा है लोगो को न्याय व हक़ दिलाता है उनका ऐसा बर्ताव कैसे हो सकता है आदि अनेकों सवाल जेहन में घटना की याद आते ही दौड़ने लगते हैं?
वकीलों को अपना हक- न्याय कैसे मिले प्राप्त करना उन्हें अच्छी तरहआता है।
एक मामूली सी बात पर इतना गंभीर आक्रोश समझ से परे है बाद कि जो और vdo देखे उनमे आम जन के साथ भी दुर्व्यवहार करते हुए प्रबुद्ध जन दिखाई दिए पुलिस कर्मी भयभीत भीगी बिल्ली बने बैठे रहे, मार खाते रहे, सहते रहे, वर्तमान परिपेक्ष्य में ये पुलिस की नियति हो गई है ,
निचले तबके के पुलिस कर्मियों का सम्मान रसातल में जा चुका है। पेट की आग बुझाने व परिवार पालने के लिए उनको अपने आत्मा सम्मान के साथ कई समझौते करना पड़ते है।
उनकी तरफ से कोई बोलने वाला नही और भाग्य की विडंबना देखे देश की आंतरिक सुरक्षा व समाज की सुरक्षा दायित्व इन्ही शापित कंधो पर है। updated by gaurav gupta