मऊरानीपुर (झाँसी) – जहाँ एक ओर सर्दी और बारिश की आवश्यकता होती है और वही दूसरी ओर गर्मी और धूप की आवश्यकता होती है । ये दोनों ही होना किसानों के साथ प्रकृति के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन आज का व्यक्ति ऐसा नही होने दे रहा है। मानव के सामने आपदायें स्वयं नही आ रही है उन्हें मनुष्य स्वयं निमत्रंण देकर उनसे बलात्कार कर रहा है। दिन प्रतिदिन नदियों से बालू दबंग लोगों के माध्यम से निकाली जा रही है। और नदियों को एकदम से मिटाने के लिये हर तरफ गहरी स्थिति देखने को मिल रही है। वही दूसरी ओर वनों से पेडों को भी काटा जा रहा है। इसमें तो वन विभाग के अधिकारियों का भी इसमें हाथ होता है और मिली भगत से वनों से पेडों को काट रहे है। वही इसी के साथ पहाडों को भी जोरदार तरीके से काटा जा रहा है। और प्रशासन अपनी चुप्पी साधे हुये नजर आ रहा है। दिन प्रतिदिन बारिश का समय से न होना, सर्दी और गर्मी का समय से न होना और मौसम वैज्ञानिको के द्धारा लगाया जा रहा गणित फैल होना ये सभी इन्ही समस्यों के कारण है। इन पर किसी का कोई भी ध्यान न पड रहा है। दिन प्रतिदिन अचानक से आपदायें आ जाती मौसम एकदम से बदल जाता है ये प्रकृति के बिगडे सन्तुलन को ही दरसा रहा है। कि आज का व्यक्ति अपनी पूरी उम्र सुख चैन से नही जी पा रहा है। और प्रकृति की आपदा में आने से मौत के घाट उतर रहा है। मऊरानीपुर सम्वाददाता के सर्वेक्षण के दौरान इस प्रकार की स्थिति का शत प्रतिशत अन्दाजा लगाया जा रहा है। दिन प्रतिदिन वृद्ध से लेकर नवयुवकों का मरने का क्रम जारी है। क्योंकि खाने के लिये कुछ बचा नही है किसान भी पूरी तरह सडक पर खडा हुआ है और अपना शहर छोडकर दूसरे शहर के लिये लगातार पलायन कर रहा है। वही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने जैसे ही पद भार ग्रहण किया वैसे ही किसानों का दो लाख कर्जा मुक्त किया। इसी प्रकार से लोगों को पहाडों और वनों को बचाकर रखना चाहिये। नही तो कुछ ही दिनों में अत्यधिक गम्भीर स्थिति देखने को मिलेगी। जब व्यक्ति अपना सारा परिवार और अपना शरीर ही त्यागने लगेगा और प्रकृति के सन्तुलन में पूरी तरह आ जायेगा। इतना ही नही तब न ही कोई मौसम वैज्ञानिक होगा और न ही कोई अधिकारी अफसर, और न ही कोई नेता होगा और गुंडा बचे है जितने दिन उडा ले मौज ये सभी इन्ही लोगों की देन से हो रहा है और प्रकृति का सन्तुलन पूरी तरह से बिगड गया है। रिपोर्ट_सौरभ भार्गव अनुभवी आँखें न्यूज मऊरानीपुर । updated by gaurav gupta

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