कांडी(झारखंड) – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हर साल पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान श्रीहरि विष्णु के सर्वकलामयि अवतार श्रीकृष्ण की जयंती आने वाली है। यशोदा-नन्द के लाला और देवकी-वासुदेव के पुत्र -कन्हैया का जन्म रोहिणी नक्षत्र में भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि वृष लग्न में हुआ था।
यह संयोग इस बार 2 सितंबर को बन रहा है। इस दिन कृष्णोपासक दिनभर व्रत रखकर रात्रि में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। धर्मोपदेशक, रक्षक और संस्थापक द्वारकाधीश वासुदेव नन्दलाला बांकेबिहारी के जीवन का हर रूप मोहक और प्रेरक है। कंस से दुराचारी के षड्यंत्रों से बचने से लेकर धर्मयुद्ध कुरुक्षेत्र में गीता का पाठ पढ़ाने वाले मुरलीधर की लीलाओं से विश्व सदैव लाभांवित होता आया है, और चिरकाल तक होता रहेगा ।
कृष्ण जन्माष्टमी मनाने को लेकर दिवस भ्रम पर विराम लगाते हुए बताना चाहूंगा कि गोवर्धनधारी का जन्म रोहिणी नक्षत्र में भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में वृष लग्न में हुआ था।इस बार यह संयोग 2 सितंबर रविवार को बन रहा है। इस दिन अष्टमी तिथि रात्रि 8 बजकर 46 मिनट से अगले दिन यानि सोमवार को शाम 7 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। रोहिणी नक्षत्र रविवार को रात्रि 8 बजकर 48 मिनट से सोमवार को 8 बजकर 4 मिनट तक रहेगा। इस बीच रविवार को वृष लग्न रात्रि 10 बजे से 11:57 तक रहेगी। इन तीनों के संयोग में ही कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी।
उदयातिथि का सिद्धांत तिथिविचार में अत्यंत महत्व रखता है लेकिन इनके साथ पंचांग के समस्त सिद्धांतों का विचार भी आवश्यक है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और वृष लग्न में हुआ।ऐसे में यहां उदयातिथि के विचार के तुलना में तिथि नक्षत्र और लग्न का संयोग अधिक महत्वपूर्ण है ।
*धनिए की पंजीरी का लगाएं भोग*
भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के दौरान उन्हें धनिए की पंजीरी का भोग लगाएं। कारण, रात्रि में त्रितत्व वात पित्त और कफ में वात और कफ के दोषों से बचने के लिए धनिए की पंजीरी का प्रसाद बनाकर ही भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ाएं।धनिए के सेवन से वृत संकल्प भी सुरक्षित रहता है।
करें कृष्ण लीलाओं का श्रवण और गीतापाठ-
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अत्यंत कठिनाई में मातुल कंस की जेल में हुआ। पिता वसुदेव ने उफनती यमुना को पार कर रात्रि में ही उन्हें वृंदावन में यशोदा-नन्द के घर छोड़ा।यशोदानंदन को खोजने और मारने कंस ने कई राक्षस-राक्षनियों को वृंदावन भेजा। नन्हे बालगोपाल ने स्वयं को इनसे बचाया। इंद्र के प्रकोप और घनघोर बारिश से वृंदावनवासियों को बचाने गोवर्धन पर्वत उठाया। मनमोहन ने गोपिकाओं से माखन लूटा।गाएं चराईं। मित्र मंडली के साथ खेल खेल में कालियादह का मानमर्दन किया। बृजधामलली राधा और अन्य गोपियाे के साथ रास किया व कंस वध किया ।
बालमित्र सुदामा से द्वारकाधीश होकर भी दोस्ती को अविस्मृत रखा।द्रोपदी का चीरहरण निष्प्रभावी किया। धर्मपालक पांडवों की हर परिस्थिति में रक्षा की। अर्जुन को कुरुक्षेत्र में गीता का उपदेश दिया।द्वारकापुरी की स्थापना की ।संवाददाता-विवेक चौबे, updated by gaurav gupta