मऊरानीपुर (झाँसी) – नगर में बुधवार को ईद – उल- मिलादुन्नवी (बारावफात) का पर्व बडे धूमधाम के साथ मनाया गया। जिसमें मुस्लिम समुदाय ने भव्य जुलूस निकालकर एकता का संकेत देते हुये

भव्य जुलूस निकाला। जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों ने जुलूस निकालकर भाईचारे का पैगाम दिया। साथ ही उन्होनें बताया कि हजरत मुहम्मद साहब की पैदाइश इस दिन हुई और उनका जीवन में आने का उद्देश्य मोहब्बत था। वो हर व्यक्ति तक मोहब्बत का पैगाम पहुँचाना चाहते थे। मोहम्मद साहब ने पैगाम दिया है कि मोहब्बत से जीना ही जिन्दगी है। दूसरों के बुरे समय में मददगार बनने वाला अल्लाह का नेक बंदा होता है। वो अल्ला के करीब होता है। जो दूसरों की मदद करता है। अल्लाह उस पर रहमत बरसाते है। पूरे नगर में मुस्लिम समुदाय का हिन्दू समुदाय ने भी जोरदार स्वागत किया। जिससे दोनों धर्मो में एकता देखी गयी।यहाँ दिया गया भाईचारे का संदेश मऊरानीपुर में काफी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग निवास करते है। पूरे नगर के क्षेत्र में जुलूस निकाला गया। जुलूस निकालने के मतलब आजादी से है। गुलामी की बेडियों से दूर आजादी से रहने की सीख मोहम्मद साहब ने दी। वो कहते है हजरत मोहम्मद साहब ने इंसानियत का पैगाम दिया। जुल्म करने वाले जालिमों को नेक राह दिखायी। वो अल्लाह के नेक बंदे थे। उनका संदेश को जन जन तक पहुँचाने और भाईचारे को बढाने के लिये मुस्लिम समाज के लोग जुलूस निकालकर मोहम्मद साहब की इबादत करते है।इस दिन मनाया जाता है बारावफातबाराबफात यानि ईदमिलादुन्नवी बेहद खास माना जाता है। इस माह की चाँद की 12 तारीख को इस्लाम मजहब के बानी हजरत मोहम्मद साहब की पैदाइश हुई और रबी उल अव्वल को आप इस दुनिया से रुखसत भी हुए। वे मोहब्बत का पैगाम लेकर इस दुनिया में आए। ये संदेश हजरत मोहम्मद साहब की तरफ से दिया। रहमत बनकर आए इस दुनिया में हजरत मोहम्मद साहब दुनिया के लिये रहमत बनकर आए। उन्होनें इंसानियत का पैगाम दिया। जालिक के जुल्मों को रोकने और गरीबों , मजबूरों की मदद करने की तालीम दी। एक दूसरे का ख्याल रखना , एक दूसरे से मोहब्बत करना सिखाया। बारावफात के दिन खुदा ने भेजा मोहम्मद साहब कोहजरत रसूल उल्लाह मोहम्मद सल्लाह औह आलै वसल्लम को खुदा ने पैदा करके इंसानों की हिदायत के वास्ते जर्मी पर भेजा ताकि वह लोगों को उम्दा तालीम देकर उन्हें नेक इंसान बनाये। यह सिलसिला हजरते आदम से शुरु हुआ। और लगभग 124000 नबी और रसूल तशरीफ लाये। उनमें सबसे आखिर में आज से साढे चौदह सौ साल पहले 20 अप्रैल 571 ईसवी मुताबिक आज के दिन (12 रबी-ए-उल-अव्वल) पीर के दिन सुबह अरब के मक्का शहर में हजरते आमना खातून के मुबारिक शिकम (पेट) से मोहम्मद साहब पैदा हुये।जुलूस निकला इन स्थानों सेबारावफात का जुलूस पुरानी मऊ से प्रारम्भ होकर बजरिया, खादिम अली , दुबे का चौक, टीकमगढ बस स्टैण्ड, बिलैया चौराहा, रानी लक्ष्मीबाई चौराहा, बडाबाजार से खादिमअली मुहल्ला में सम्पन्न हुआ।जुलूस में ये थे मुख्य बिन्दुजुलूस में डी. जे. , बैंड, नगाडे, ढोल भागडा, घोडे, तोपें, कारागार, परी, झण्डे आदि आकर्षण के केन्द्र रहे। जिससे नगर में जुलूस से मुस्लिम भाईचारें में एकता देखी गयी।ये थे जुलूस में मौजूद लोगहाजी तुफैल अहमद, हाजी नूर अहमद, हाजी महमूद अहमद, हाजी नौसाद आलम जमाली, जावेद भाई, चाँद राईन, नूर मुहममद हाजी लतीफ, इकबाल अहमद, मोहम्मद इदरीश, हाजी मकबूल अहमद, हाजी सुबराती, हबीब खान, शाकिर खान मन्सूरी, इल्यास मन्सूरी, रहीश मन्सूरी, आमिर भाई, इरफान, अफजल मन्सूरी, निजामुद्दीन जमाल, वहीद मन्सूरी, इमरान भाई, शहीद, लकी खान, जलालउद्दीन जलाल, हनीफ खान मन्सूरी, मुईन खान, महराज भाई आदि सैकडों मस्लिम जनसमूह जुलूस में मौजूद रहा। रिपोर्ट_सौरभ भार्गव अनुभवी आँखें न्यूज मऊरानीपुर ।updated by gaurav gupta

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