मुरलीगंज (संवावदाता चंचल कुमार) – लोगों ने एक बार फिर साम्प्रदायिक सद्भाव की अनूठी मिसाल पेश कर एक अभूतपूर्व सन्देश दे दिया।सभी समुदाय के लोगों ने मिलकर लगाया मानव मेला, तो इस बात को बल मिलता दिखा कि मानव धर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं और जो धर्म आपसी प्रेम और सद्भाव न सिखाता हो, वो धर्म नहीं। मुहर्रम की झरनी खेलकर एकता की अद्भुत मिसाल पेश की है। बड़े बुजुर्ग कहते हैं की इस तरह के मेले का आयोजन आज से 37 वर्ष पूर्व भी देखने को मिला है, लेकिन वह जमाना कुछ और था और अभी कुछ और है।मुरलीगंज के समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द और मानवों के प्रति मुहब्बत का पैगाम। क्या हिन्दू – क्या मुसलमान सभी एक-दूसरे की रक्षा के लिए खड़े हो जाते हैं ।मुरलीगंज प्रखंड में शांति पूर्ण माहोल में सम्पन हुआ मुहर्रम का मेला।मुरलीगंज के एलपीएम कॉलेज एवं एपीसी हाई स्कूल में लगाया गया मेला।जगह जगह चौक चौराहे पर मजिस्ट्रेट के साथ पुलिस पदाधिकारी के बल तैनात थे।महिला बल के साथ पुलिस पदाधिकारी मुस्तेद थे।प्रशानिक व्यवस्था पूरी चाक चौबंद देखी गयी।अखाड़े मे युवाओ ने दिखाये हैरत अंगेरेज करतब। अखाड़े मे एक से बढ़कर एक करतब दिखाकर लोगो को आकर्षित कर रहा था वही छोटे-छोटे बच्चे भी युवाओ के को पीछे छोड़कर अपने हुनर का जलवा दिखाकर लोगो को चकित कर दिया। जुलूस के दौरान जगह-जगह मुस्लिम युवाओ ने ढोल नगाड़े की थाप पर तलवारबाजी और लाठी चलाकर हैरतअंगेज कारनामें दिखाये ।मोहर्रम क्यों मनाया जाता हैमुहर्रम को इस्लामी साल पहला महीना होता है । इसे हिजरी भी कहा जाता है । यह एक मुस्लिम त्यौहार है । हिजरी सन की शुरूआत इसी महीने से होती है । इतना ही नहीं इस्लाम के चार पवित्र महीनों में इस महीने को भी शामिल किया जाता है ।दरअसल इराक में यजीद नामक जालिम बादशाह था जो इंसानियत का दुश्मन था । हजरत इमाम हुसैन ने जालिम बादशाह यजीद के विरुद्ध जंग का एलान कर दिया था ।मोहम्मद-ए-मस्तफा के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला नामक स्‍थान में परिवार व दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था । जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था ।वह मुहर्रम का ही महीना था ।और उस दिन 10 तारीख थी । जिसके बाद इस्‍लाम धर्म के लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया ।बाद में मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में बदल गया ।मुहर्रम माह के मुस्लिम समाज के सुन्नी समुदाय के लोगों की तो वह 10 मुहर्रम के दिन तक रोज़ा रखते हैं । इस दौरान इमाम हुसैन के साथ जो लोग कर्बला में श‍हीद हुए थे ।उन्‍हें याद किया जाता है ।और इनकी आत्‍मा की शांति की दुआ की जाती है ।आपको बता दें की मुहर्रम को कोई त्‍यौहार नहीं है ,बल्कि मातम मनाने का दिन है ।जिस स्‍थान पर हुसैन को शहीद किया गया था वह इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है ।मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशुरा कहा जाता है ।मौके पर मुरलीगंज नगर मुख्य पार्षद श्वेत कमल उर्फ बौआ ने कहा कि सच्चे इंसान को लोग सभी दिन याद करते है ।और इसका जीता जगता सबूत है।इमाम हुसैन और हसन जो बुराई पर सच्चाई की जीत का प्रतिक है। साथ ही मुरलीगंज के सभी समुदाय के लोग आपस मे एकता और सद्भावना का धरती रहा हैं।मौके पर एडीएम वसी अहमद अनुमंडल पदाधिकारी बृंद लाल,मुरलीगंज इंस्पेक्टर जेपी चौधरी, महिला थानाध्यक्ष इंस्पेक्टर ललितेश्वर।पांडेय,सदर प्रभार के निरीक्षक ज्योतिष कुमार सिन्हा,प्रखंड विकास पदाधिकारी ललन कुमार चौधरी मुरलीगंज, अंचलाधिकारी शशिभूषण कुमार,दयानंद शर्मा,मनोज यादव वार्ड पार्षद,चंदन यादव,विश्वजीत कुमार उर्फ पिंटू मुखिया। पर मोo रईस,मोo नजीर,मोo अफताब, मोo शाकिब,मोo फिरोज आलम, मोo महबूब आलम,समेत सभी धर्म लोगों ने हिस्सा लिया। updated by gaurav gupta

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