भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में सशक्त हस्ताक्षर माने जाने वाले श्रीनिवास तिवारी का निधन हो गया। 93 साल की आयु में श्रीनिवास तिवारी ने अंतिम सांस ली। वैसे तो समाजवादी पार्टी से श्रीनिवास तिवारी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की थी, लेकिन कांग्रेस ज्वाइऩ करने के बाद ही उनकी असली राजनीतिक शख्सियत बाहर आई थी। आलम ये था कि 90 के दशक में विंध्य क्षेत्र में उनका राजनीतिक प्रतिद्वंदी ही नहीं था। सिर्फ 24 साल की छोटी सी उम्र में विधायक बनने वाले श्रीनिवास तिवारी ने जमींदारी प्रथा का विरोध कर देश भर में सनसनी फैला दी थी, हालांकि ये बात अलग कि जिंदगी के आखिरी वक्त में विंध्य क्षेत्र के उसी व्हाइट टाइगर को कई विवादों का सामना करना पड़ा।जब जज ने कहा था – किसी तानाशाह से कम नहीं है आपका रवैया। साल 2015 में संवैधानिक पद का दुरुपयोग करते हुए रिश्तेदारों और करीबियों को नौकरी दिलवाने के आरोप में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी काफी चर्चा में थे। मामला कोर्ट में चल रहा था और उस वक्त श्रीनिवास तिवारी ने अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। तब हाईकोर्ट ने न सिर्फ श्रीनिवास तिवारी की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी थी बल्कि जस्टिस जीएस सोलंकी की एकलपीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि श्रीनिवास तिवारी ने अपने कार्यकाल में एक तानाशाह राजा की तरह भूमिका निभाई जो खुद को कानून के ऊपर समझता है। हम जिस लोकतंत्र में रहते हैं, वहां किसी भी ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति को नियम और कानून से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।इतना ही नहीं कोर्ट ने ये भी कहा था कि भले ही नियुक्तियों में गड़बड़ी प्रमुख सचिव या अवर सचिव के हस्ताक्षर से की गई हैं, लेकिन यह सब श्रीनिवास तिवारी जैसे प्रभावशाली व्यक्ति के दबाव के बिना संभव नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ये ऐसा मामला है जिसमें आरोपी को कस्टडी में लेकर पूछताछ करना जरूरी है, इसलिए ऐसी स्थिति में अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट का रवैया इतना तल्ख था कि कोर्ट ने श्रीनिवास तिवारी की उस दलील को भी खारिज कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि वे 89 साल के वृद्ध हैं और उन्हें दोनों आंखों से बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता।फर्जी  नियुक्तियों में सामने आया था नाम। इससे पहले विधानसभा सचिवालय के उप सचिव एमएम मैथिल की शिकायत पर जहांगीराबाद पुलिस थाना जहांगीराबाद भोपाल ने 27 फरवरी 2014 को पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित 18 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। मामला 1993 से लेकर 2003 में विधानसभा में लिपिक सहित विभिन्न संवर्ग में हुई अवैध नियुक्तियों का है। यह सभी नियुक्तियां दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुई हुई हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अवैध नियुक्तियों की जांच के लिए जस्टिस शचीन्द्र द्विवेदी की एक कमेटी गठित की थी।वर्ष 2006 में ही कमेटी ने मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपी। रिपोर्ट में भारी गड़बड़ी कर अवैध नियुक्तियों के मामले का खुलासा किया गया था और दोषियों पर प्रकरण दर्ज कराए जाने की अनुशंसा की गई थी। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा को भी यह रिपोर्ट सौंपी गई। इसी आधार पर पुलिस ने दिग्विजय सिंह, श्रीनिवास तिवारी, एके पयासी सहित 19 नामजद लोगों को इसमें आरोपी बना लिया है।जिंदगी के आखिरी वक्त में विंध्य क्षेत्र के उसी व्हाइट टाइगर को कई विवादों का सामना करना पड़ा।एक तानाशाह जैसी थी ये शख्सियत, अंत तक रहा विवादों से नाता

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