वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया है कि जिन लोगों को सोते समय सपने नहीं आते उन लोगों को अल्जाइमर डिजीज़ का खतरा बढ़ जाता है। ये रिसर्च न्यू रिसर्च जर्नल ‘न्यूरोलॉजी’ में पब्लिश हुई है। वैज्ञानिकों के अनुसार रैपिड आइ मूवमेंट यानि स्लीपिंग का वो फेज जिसके दौरान सबसे ज्यादा सपने देखे जाते हैं। रैपिड आइ मूवमेंट स्लीप में हर प्रतिशत की गिरावट से किसी भी प्रकार के डिमेंशिया होने का रिस्क 9% और अल्जाइमर होने का रिस्क 8% अधिक बढ़ जाता है।

अमेरिका में बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता डॉ. मैथ्यू पेस का कहना है कि नींद के विभिन्न पैटर्न अल्जाइमर डिजीज़ को प्रभावित कर सकते हैं। ये रिसर्च यूएस के स्लीप स्टडी की खोज पर आधारित है जिसमें 60 साल की आयु के 321 प्रतिभागियों को शामिल किया गया जिन्हेंर 12 साल तक ऑब्सर्व किया गया।

इस साल की शुरुआत में इसी टीम ने एक अन्‍य रिसर्च में पाया था कि जो लोग प्रति रात 9 घंटे से अधिक सोते हैं उनमें डिमेंशिया होने की आशंका दुगनी हो जाती है उन लोगों की तुलना में जो लोग कम घंटे सोते हैं।

यूके की अल्जाइमर रिसर्च चैरिटी के डॉ. एलिसन इवांस ने कहा कि इस स्टडी से यह कहना असंभव है कि क्या डिस्टर्ब रैपिड आइ मूवमेंट नींद से डिमेंशिया का रिस्क बढ़ता है या ये उसके प्रारंभिक परिणाम हैं। नींद और डिमेंशिया के बीच के कॉम्लीडिमेकेटेड रिलेशनशिप को बेहतर ढंग से समझने के लिए और अधिक रिसर्च की जरूरत है।

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