देहरादून : राज्य के निजी मेडिकल कॉलेजों में सीट आवंटन के बाद भी एमबीबीएस में दाखिला न दिए जाने का मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गया है। अभिभावकों ने इस बावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजा है। इसके अलावा एक पत्र सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजा गया है। ऐसे तकरीबन 81 छात्र-छात्राएं हैं, जो सरकार व निजी कॉलेजों के बीच की खींचतान के कारण दाखिले से महरूम रह गए हैं।

देशभर के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश अब राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा (नीट) के माध्यम से होते हैं। राज्य में भी इस बार केंद्रीयकृत काउंसिलिंग के जरिये दाखिले किए जा रहे हैं। जिसका जिम्मा एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय के पास है। काउंसिलिंग का प्रथम चरण संपन्न हो चुका है, पर कई छात्रों को सीट आवंटित होने व फीस जमा करने के बाद भी दाखिला नहीं मिल सका है।

दरअसल प्राइवेट मेडिकल कॉलजों में अभी तक वर्ष 2012-2013 में निर्धारित शुल्क के आधार पर प्रवेश होते आए हैं। फीस का निर्धारण नए सिरे से होना है, पर यह प्रस्ताव अभी भी ठंडे बस्ते में है। उस पर ये मेडिकल कॉलेज यूनिवर्सिटी के तहत संचालित होते हैं। ऐसे में विवि एक्ट की दुहाई देकर यह भी तर्क दिया जा रहा है कि फीस व सीट निर्धारण का अधिकार विश्वविद्यालय का है।

इसे लेकर सरकार के प्रतिनिधि व मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के बीच एक राय नहीं बन सकी है। इस बीच एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने यह अंतरिम आदेश दिया था कि दाखिले राज्य सरकार के आदेशानुसार ही किए जाएं, लेकिन यह आदेश प्रवेश के अंतिम दिन आया। इस पर एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज में 67 ही प्रवेश हुए हैं।

वहीं, एक छात्रा की याचिका पर उच्च न्यायालय ने हिमालयन इंस्टीट्यूट को दाखिले का आदेश दिया था। मगर संस्थान ने उसी एक छात्रा को प्रवेश दिया जो कोर्ट गई थी। ऐसे में अब अन्य छात्र-छात्राओं ने पीएमओ से मदद की गुहार लगाई है।

चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि उक्त छात्रों को काउंसिलिंग के द्वितीय चरण में स्वत: ही वरीयता मिलेगी। आगे क्या करना है इस विषय में शासन स्तर पर विचार-विमर्श चल रहा है।

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