नई दिल्ली: रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजीज का मानना है कि जितनी भाषाई समानताएं पारम्परिक मीडिया पर है, उतनी ही, इंटरनेट पर भी होनी चाहिए. रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजीज की स्थापना 2009 में की गई थी. इसके संस्थापक सदस्य अरविंद पाणी, विवेक पाणी और एस. के. मोहांती हैं . यह एक मजबूत शोध और विकास टीम का उदाहरण पेश करती है. डिजिटल दुनिया में भाषाई समानता लाने के लिए रेवरी, टेक्नोलॉजीज का निर्माण  करने में जुटी हुई है. रेवरी ओईएम और चिपसेट निर्माताओं के साथ काम करती है.

लोकलाइजेशन सर्विस

कस्टमर इंटरनेट पर ऑनलाइन खुदरा, ई-वाणिज्य बाज़ार, यात्रा, मीडिया और मनोरंजन) बैंकों और वित्तीय सेवाओं, ई-शासन और डेवलपर समुदाय से है. इस प्लेटफार्म पर लोकलाइजेशन सर्विस जैसे स्थानीय भाषा के अनुवाद, ट्रांसलिटरेशन, डिवाइस इनपुट, और ए.पी.आई का विकल्प भी उपलब्ध है जिससे आप आसानी से असल शब्दों में खोज सकते है. यह प्लेटफार्म व्यापारिक बुनियादी सुविधाओं (वेबसाइटों और ऐप)के लिए भी उपलब्ध है ताकि वास्तविक समय में आपके ग्राहक डिजिटल भाषाओं में से अपनी पसंदीदा भाषा का इस्तेमाल कर सकें.

भाषाई संगठनों का व्यापारिक विस्तार

रेवरी का उद्देश्य भारत के 10% अंग्रेजी उपभोक्ताओं के दायरे से अन्य भाषाई संगठनों का व्यापारिक विस्तार करना है. 1.3 करोड़ भारतीय, 22 आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाएं और 720 बोलियां बोलते हैं. भारत में बोलीं जाने वाली प्रत्येक भाषा 40 किलोमीटर के बाद बदलती रहती है और 122 भाषाएं 10,000 से ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है .

डिजिटल इंडिया की भ्रांतियां

भ्रांति 1:  माना जाता है कि क्षेत्रीय भाषाओं के ग्राहकों को ऑनलाइन खरीदने की आदत नहीं होती है- इससे कुछ स्पष्ट नहीं होता है क्योंकि देखा गया है कि भारत के टीयर 2-3  शहरों और कस्बों में भी महंगी लक्ज़री गाड़ियां खरीदी जाती हैं साथ में,  पिछले 2 सालों में गहने का 50 प्रतिशत ई-टेलिंग ऑर्डर टियर 2-3 शहरों से आ रहा  है.

• भ्रांति  2:  ज्यादातर, रिजनल भाषाओं के उपभोक्ता टीयर 3-4 शहरों के रहने वाले होते हैं-  इसके विपरीत, टियर 1 शहरों में डिजिटल मीडिया पर 70 प्रतिशत से अधिक ऑनलाइन ट्रैफिक भी क्षेत्रीय भागों से आता है. लेकिन आप इसे ध्यान से देखेंगे तो समझेंगे कि विभिन्न भाषा के प्रवासी ट्रैफिक बनाते है . जहाँ वे राज्य की प्रमुख भाषाएं सीखनें लगते हैं लेकिन कार्यस्थल वाली भाषा के अलावा वापस घर जाकर अपनी घरेलू भाषा का इस्तेमाल करते हैं.

• भ्रांति  3:  अंग्रेजी उपभोक्ताओ के लिए काम करने वाले तरीके भारतीय भाषा वाले उपयोगकर्ता के लिए भी काम करेंगे.

सच्चाई से बहुत दूर

स्थानीय भाषा के उपयोगकर्ता के लिए वेबसाइटों पर शॉपिंग कार्ट की इमेज को देखकर भम्र में पड़ जाते हैं क्योंकि वे सुपरमार्केट से खरीदारी करने के आदी नहीं होते हैं और इसलिए उन्होंने अपने जीवन में एक ऐसी शॉपिंग कार्ट कभी देखी नहीं होती है. ‘क्लिक टू ऑर्डर’ आदि जैसे विकल्पो पर कॉल करना, उपयोगकर्ताओं के लिए भी मुश्किल विकल्पों में से एक है . ईकॉमर्स बेवसाइट की बात करें तो  “बच्चों”, से एक अजीब सवाल के बाद पूछे जाते है, “आप बच्चों को बेचते  हैं ?” इसीलिए बेवसाइट्स में कोई भ्रम या गलत अनुवादों का प्रयोग नहीं होना चाहिए, यह सुनिश्चित करने के लिए शब्दावली उपयुक्त रूप से संशोधित होनी जरुरी है.

नेविगेशन संरचना

भारतीय उपभोक्ताओं को मुश्किल नेविगेशन संरचना या हैवी कंटेंट दूर कर सकती है. भारतीय उपयोगकर्ता को आकर्षित करने के लिए उपयुक्त इमेज के साथ बड़े फ़ॉन्ट अच्छी तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं. भारतीय उपभोक्ताओं के लिए बेवसाइट की डिजाइनिंग बेहद महत्वपूर्ण है उदाहरण के तौर पर, मलयालम जैसी भारतीय भाषाओं में कुछ शब्द या वाक्यांश, अंग्रेज़ी भाषा के बराबर की लंबाई 1.5-  2x हो सकते हैं और इसे विशेष रूप से मोबाइल वेबसाइटों और ऐप्स के लिए नहीं बनाया जा सकता है.

आधी से ज्यादा आबादी  के पास ई-मेल आईडी मौजूद नहीं

भारतीय उपभोक्ताओं के एक बड़े प्रतिशत के पास नेट बैंकिंग, क्रेडिट या डेबिट कार्ड जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं हुई है , इसलिए ग्राहकों के इस सेगमेंट की बिक्री बढ़ाने के लिए कैश ऑन डिलीवरी का विकल्प उपलब्ध कराया जाता है. ऐसी ही समस्याओं में से एक ईमेल एड्रेस भी थी लेकिन अब एमेजन, फ्लिपकार्ट और कई शॉपिंग बेवसाइट्स ने अधिकांश भारतीयों को मोबाइल नंबर से साइन अप करने का विकल्प दे दिया है क्योंकि भारत की आधी से ज्यादा आबादी  के पास ई-मेल आईडी मौजूद नहीं है . इसलिए कंपनियां  मोबाइल नंबर के साथ साइन अप करने या लॉग इन करने का विकल्प उपलब्ध करा रहीं है जिससे ऐसे  यूजर्स को ऐसी स्कीमों का फायदा मिलता रहे .

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