*युवा कवि उज्ज्वल कुमार झा ने अपनी कविताओं से देशवासियों को दिया रक्षाबंधन की शुभकामनाएं*सरहद पर हम सब की रक्षा करते हुए एक भाई जब कई साल बाद राखी के दिन अपनी बहन के घर पहुँचता है तब वो देखता है कि उसकी बहन पिछले कुछ सालों से रक्षाबंधन में न आने की वजह से रूठी हुई है

फिर भाई उसे किस प्रकार मनाता है इसी मनोरम क्षण को अपने शब्दों से जीवंत करने का प्रयास किया हूँ, अगर मेरी कविता से आपके दिलों मे भी उस मनोरम क्षण का आभास हो तो रक्षाबंधन के इस पावन अवसर पर अपनी प्रतिक्रिया देकर आशीर्वाद जरूर पहुँचाये ।

आइये कविता पढ़ते हैं-

शीर्षक- *अब तो राखी बाँधों बहना*

इस देश के लिए जन्म हुआ बस यही धर्म निभाता हूँ ,
कई सालों से न आने का कारण मैं बताता हूँ ।।
देश के लिए लड़ते-लड़ते राखी में घर न आता था ,
इस देश के जितने दुश्मन है सबसे मैं टकराता था ।
वरना घर से दूर नहीं संभव होगा ऐसे रहना,
सच मैं सबकुछ बता दिया हूँ अब तो राखी बाँधों बहना ।

सरहद पर प्यारी बहना तेरी याद सताने लगता है ,
कितना भी रोकूँ मैं तब भी आँसू निकलने लगता है ।
तेरे इस राखी के बल से दुश्मन को मार गिराऊँगा ,
अब तो मान जा बहना हर राखी में घर मैं आऊँगा ।
मैं तो अपना बोल दिया बोलो तेरा क्या कहना ,
सच मैं सबकुछ बता दिया हूँ अब तो राखी बाँधों बहना ।

मुझे याद है वह दिन भी जब था राखी त्योहार ,
चला बाँधकर प्यार का बंधन करने सपनो को साकार ,
ये मुझे कहाँ पता कि होगी गोली की बौछार,
मेरी जान बचा ली तेरे बाँधे बंधन का वह प्यार ।
सुना दी अपनी पूरी कहानी अब तुम चुप न रहना ,
सच मैं सबकुछ बता दिया हूँ अब तो राखी बाँधों बहना ।

सुनकर भैया की मजबूरी वह फूट-फूट कर रोती है,
बैठे भैया के चरणों को अपने हाथों धोती है ।
बाँध कलाई प्यार का बंधन अब वो खुश हो जाती है,
अपने हाथों से भैया को मिठाई भी वो खिलाती है ।
आशीर्वाद दे भैया बोले खुश हमेशा रहना ,
सच तो सबकुछ बता दिया हूँ अब तो राखी बाँधों बहना ।

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